राजस्थान मे कृषि एवं प्रमुख फसलें-Agriculture and Major crops in Rajasthan
कृषि
हरित क्रांति और अन्य कृषि क्रांतियाँ
हरित क्रांति
संस्थापक: वैश्विक स्तर पर डॉ. नॉर्मन ई. बोरलॉग को हरित क्रांति का जनक माना जाता है। वे मूल रूप से मेक्सिको (अमेरिका) के निवासी थे।
शुरुआत:
पहली हरित क्रांति 1966-67 में शुरू हुई।
दूसरी हरित क्रांति 1983-84 में प्रारंभ हुई।
मुख्य फसलें: यह मुख्य रूप से गेहूं और चावल की फसलों के लिए शुरू की गई थी।
सर्वाधिक प्रभाव: हरित क्रांति का सर्वाधिक सकारात्मक प्रभाव गेहूं की फसल पर पड़ा।
भारत में संस्थापक: भारत में हरित क्रांति के जनक एम.एस. स्वामीनाथन को माना जाता है।
अन्य प्रमुख कृषि क्रांतियाँ
श्वेत क्रांति: इसका संबंध दुग्ध उत्पादन से है। डॉ. वर्गीज कुरियन को इसका संस्थापक माना जाता है। उन्होंने 1970 में 10 जिलों में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की।
लाल क्रांति: टमाटर और मांस उत्पादन से संबंधित।
काली क्रांति: पेट्रोलियम उत्पादन से संबंधित।
पीली क्रांति: सरसों तथा तिल उत्पादन से संबंधित।
नीली क्रांति: मत्स्य उत्पादन से संबंधित।
भूरी क्रांति: खाद्यान्न प्रसंस्करण से संबंधित।
बादामी क्रांति: मसालों के उत्पादन से संबंधित।
गुलाबी क्रांति: झींगा मछली उत्पादन से संबंधित।
हरित सोना क्रांति: बाँस उत्पादन से संबंधित।
रजत क्रांति: अंडों के उत्पादन से संबंधित।
सिल्वर क्रांति: कपास उत्पादन से संबंधित।
सुनहरी क्रांति: फल, फूल तथा बागवानी से संबंधित।
गोल क्रांति: आलू उत्पादन से संबंधित।
इंद्रधनुष क्रांति: इसका प्रमुख कार्य सभी क्रांतियों पर निगरानी रखना और उनके समन्वय को सुनिश्चित करना है।
भारत में प्रमुख फसल ऋतुएँ
भारतीय कृषि मुख्य रूप से तीन प्रमुख फसल ऋतुओं में विभाजित है:
1. खरीफ ऋतु एवं फसलें
अवधि: ये फसलें आमतौर पर जुलाई माह में बोई जाती हैं और नवंबर माह में काट ली जाती हैं।
स्थानीय नाम: इन्हें राजस्थान में स्यालु या सावणु के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख फसलें: चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन आदि।
2. रबी ऋतु एवं फसलें
अवधि: ये फसलें दिसंबर माह में बोई जाती हैं और मार्च माह में काट ली जाती हैं।
स्थानीय नाम: इन्हें उनालु के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख फसलें: गेहूं, जौ, चना, सरसों, जीरा, मेथी, तारामीरा, मटर, मसूर आदि।
3. जायद ऋतु एवं फसलें
अवधि: ये फसलें मार्च-अप्रैल माह में बोई जाती हैं और मई-जून माह में काट ली जाती हैं।
प्रमुख फसलें: तरबूज, खरबूजा, खीरा और विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ।
कृषि संबंधी विशिष्ट विशेषताएँ
मिश्रित कृषि: जब कृषि और पशुपालन को साथ-साथ किया जाता है, तो उसे मिश्रित कृषि कहते हैं।
बारानी कृषि: ऐसी कृषि जो पूरी तरह से वर्षा पर आधारित होती है।
विशेष बिंदु: राजस्थान की अधिकांश कृषि बारानी कृषि की श्रेणी में आती है।
व्यापारिक कृषि: जिन फसलों को उगाने का मुख्य उद्देश्य व्यापार करके धन अर्जित करना होता है, वे व्यापारिक फसलें कहलाती हैं। उदाहरण: चाय, कॉफी, कपास, तम्बाकू, गन्ना आदि।
स्थानांतरी कृषि (झूमिंग कृषि): किसान द्वारा स्थान बदल-बदल कर की जाने वाली कृषि।
भारत में प्रचलित नाम: इसे भारत के कई हिस्सों में झूमिंग कृषि के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान में प्रचलित नाम: राजस्थान में इसे स्थानीय रूप से वालरा या वात्रा कहते हैं।
भील जनजाति द्वारा:
पहाड़ों के ऊपरी भागों में की जाने वाली स्थानांतरी कृषि को चिमाता कहते हैं।
पहाड़ों के निचले भागों में की जाने वाली स्थानांतरी कृषि को दाजिया कहते हैं।
फसल | सर्वाधिक उत्पादन जिला वाला जिला | सर्वाधिक क्षे. वाला जिला | अन्य प्रमुख उत्पादक जिले | जलवायु व मिट्टी | विशेष विवरण |
चावल | हनुमानगढ़ | बूंदी | बूंदी, गंगानगर, कोटा, बांसवाड़ा, डूंगरपुर | उष्ण व नम जलवायु उपयुक्त। वर्षा-50 से 200 सेमी. वार्षिक। तापमान-20º से 30º सेन्टीग्रेड। मिट्टी-काली व चिकनी दोमट। | भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश। सर्वाधिक चावल उत्पादन पश्चिमी बंगाल व उत्तर प्रदेश में होता है खरीफ की फसल। |
बाजरा | अलवर | बाड़मेर | जोधपुर, जयपुर, अलवर, जालौर, चूरू | नम व उष्ण मौसम उपयुक्त। मिट्टी-रेतीली दोमट। | देश के उत्पादन का लगभग 49.64% से अधिक राजस्थान में। प्रदेश का देश में प्रथम स्थान (उत्पादन व क्षेत्रफल दोनों में)। राज्य के सर्वाधिक कृषि क्षेत्र (लगभग 1/4 भाग) में बाजरा बोया जाता है। |
मक्का | चितौड़गढ़ | उदयपुर | उदयपुर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, राजसमंद, झालावाड़, चित्तौड़गढ़ | 24º से 30º सेन्टीग्रेड तापमान। यह गर्म मौसम का पौधा है। जल की प्रचुर आपूर्ति उपयोगी। दोमट मिट्टी उपयुक्त। | देश के कुल मक्का उत्पादन का 6.17 प्रतिशत राज्य में उत्पादित। राज्य का सम्पूर्ण देश में क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रथम एवं उत्पादन की दृष्टि से छठा स्थान (2014), सर्वाधिक उत्पादन आन्ध्रप्रदेश में स्थान है। माही कंचन माही धवल व सविता, मेघा मक्का की मुख्य किस्में है। मक्का की पत्तियों से साईलेज नामक चारा बनाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मक्का का 80 प्रतिशत विकास रात को होता है। मक्का को ‘अनाजो की रानी’ कहा जाता है। |
ज्वार | अजमेर | अजमेर | टोंक, पाली, अलवर, भरतपुर, जयपुर, नागौर | गर्म जलवायु की फसल। औसत तापमान-26º-30º डिगी। वर्षा-35 से 150 सेमी.। मिट्टी-बलुई व चिकनी दोमट। | देश में क्षेत्रफल की दृष्टि से राजथान का तीसरा व उत्पादन की दृष्टि से पांचवां स्थान। सर्वाधिक उत्पादन-महाराष्ट्र में ज्वार से अल्कोहल व बीयर तैयार की जाती है। ‘क्रोप केमल’ फसल की उपमा। ज्वार को सोरगम/गरीब की रोटी /ऊँट की फसल (‘क्रोप केमल’ फसल की उपमा।) |
गेहूँ | गंगानगर | गंगानगर | हनुमानगढ़, अलवर, भरतपुर, जयपुर, बूंदी, चित्तौड़गढ़ | शीतोष्ण जलवायु, आर्द्रता-50 से 60%, मिट्टी-दोमट। | देश के कुल गेहूँ उत्पादन का लगभग 10-16% राजस्थान में होता है। उत्पादन की दृष्टि से उत्तरप्रदेश का प्रथम व पंजाब का द्वितीय व राज्य का 5वां स्थान है। गेहूँ राज्य में सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित होने वाली फसल है। |
जौ | जयपुर | गंगानगर | जयपुर, अलवर, सीकर, नागौर, भीलवाड़ा, अजमेर | शीतोष्ण जलवायु। मिट्टी-दोमट व बलुई दोमट। | बोये गए क्षेत्र एवं उत्पादन दोनों ही दृष्टि से उत्तरप्रदेश के बाद राजस्थान का दूसरा स्थान। राज्य में देश के कुल उत्पादन का लगभग 29% जौ उत्पादित होता है। ‘माल्ट‘ बनाने के लिए जौ एक प्रमुख खाद्यान्न है। रबी की फसल। |
चना | बीकानेर | बीकानेर | झुन्झुनूं, हनुमानगढ़, चुरू, गंगानगर, सीकर | ठण्डी व शुष्क जलवायु। वर्षा-मध्यम, मिट्टी-हल्की दोमट। | देश में उत्पादन की दृष्टि से राज्य का द्वितीय स्थान है। प्रथम स्थान मध्यप्रदेश का है। चना एक ऐसी दलहन फसल है जो राज्य के सभी जिलों में उत्पन्न की जाती है। |
मौठ | बीकानेर | चुरू | चुरु, बाड़मेर, जोधपुर | – | – |
मूँग | नागौर | नागौर | जयपुर, जोधपुर, जालौर, अजमेर, टोंक, पाली | शुष्क व गर्म जलवायु। वर्षा- 25 से 40 सेमी. वार्षिक। मिट्टी-दोमट। | देश में राजस्थान प्रथम स्थान पर |
उड़द | बूंदी | बूंदी | झालावाड़, बांसवाड़ा, टोंक, बूंदी, कोटा | उष्ण कटिबंधीय आर्द्र व गर्म जल- वायु। वर्षा- 40 से 60 सेमी. वार्षिक। मिट्टी-दोमट व चिकनी दोमट। | – |
चँवला | सीकर/झुंझुनूं | सीकर | झुन्झुनूं, नागौर, जयपुर, बूंदी | – | – |
मसूर | बूँदी | बूंदी | झालावाड़, भरतपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ | – | – |
कुल दलहन | नागौर | चुरु | झुन्झुनूं, सीकर, बीकानेर | – | देश में उत्पादन की दृष्टि से राज्य का दूसरा स्थान है यहां देश की 11.34% दाले उत्पादित होती है। सवाधिक दलहन उत्पादन मध्यप्रदेश में होता है। सर्वाधिक कृषिक्षेत्र (दलहन) महाराष्ट्र में है। |
कुल खाद्यान्न | अलवर | नागौर | अलवर, गंगानगर, सीकर | – | सर्वाधिक उत्पादन उत्तरप्रदेश व पंजाब में। राजस्थान का चतुर्थ स्थान। |
राई व सरसों | अलवर | टोंक | भरतपुर, बारां, कोटा, टोंक, सवाई माधोपुर | शुष्क व ठण्डी जलवायु। मिट्टी-बलुई व दोमट। | देश के कुल उत्पादन का एक तिहाई से अधिक अकेले राजस्थान में। राजस्थान का प्रथम स्थान। विश्व में सरसों उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। |
मूंगफली | बीकानेर | बीकानेर | सीकर, चूरू, जोधपुर, चित्तौड़गढ़ | उष्ण कटिबंधीय जलवायु। तापमान-25°-30° से.ग्रे। वर्षा- 50 – 100 सेमी.ए मिट्टी-बलुई व दोमट। | भारत में संसार की सर्वाधिक मूंगफली उत्पादित होती है। देश में सर्वाधिक उत्पादन गुजरात व आन्ध्रप्रदेश में होता है। राजस्थान का दूसरा स्थान। |
अरण्डी | जालौर | जालौर | पाली, बाड़मेर, सिरोही | – | देश में उत्पादन में राज्य का तीसरा स्थान। प्रथम-गुजरात, भारत का विश्व में ब्राजील के बाद दूसरा स्थान। सर्वाधिक तेल अरण्ड़ी के बीजों में पाया जाता है। |
तारामीरा | नागौर | नागौर | बीकानेर, भरतपुर, टोंक, नागौर भीलवाड़ा | – | – |
तिल | पाली | पाली | भीलवाड़ा, जोधपुर, सिरोही, सवाई माधोपुर, टोंक, हनुमानगढ़, करौली | उष्ण व समोष्ण जलवायु। तापमान-25º-27º से.ग्रे., वर्षा-30-100 सेमी। मिट्टी-हल्की बलुई दोमट। | राजस्थान का सम्पूर्ण भारत में तिल के कृषित क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा स्थान है एवं उत्पादन में पांचवां स्थान है। |
राज्य में प्रमुख फसलों की स्थिति (अंतिम आँकड़े)
फसल | सर्वाधिक उत्पादन जिला वाला जिला | सर्वाधिक क्षे. वाला जिला | अन्य प्रमुख उत्पादक जिले | जलवायु व मिट्टी | विशेष विवरण |
सोयाबीन | बांरा | बारां | झालावाड़, चित्तौड़गढ़, कोटा,बूंदी, बांसवाड़ा (हाड़ौती भाग) | तापमान-15º-35º से.ग्रे., वर्षा-75 से 125 सेमी. वार्षिक। मिट्टी-गहरी दामट, चिकनी दोमट। | तिलम संघ द्वारा कोटा सोयाबीन परियोजना शुरू करने के बाद पूरा हाड़ौती क्षेत्र सोयाबीन उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाने लगा है। सोयाबीन में सर्वाधिक मात्रा में प्रोटीन (43%) तथा तेल 20% है। यह दलहनी फसल है। |
अलसी | अलवर | टोंक | चित्तौड़, झालावाड़,बारां, बूंदी,हनुमानगढ़, नागौर | समशीतोष्ण व शीतोष्ण जलवायु।मिट्टी-दोमट। | भारत रूस व कनाडा के बाद तीसरा बड़ा उत्पादक देश। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक उत्पादन। इसके रेशे से लिनेन वस्त्र बुने जाते हैं। |
कपास | हनुमानगढ़ | हनुमानगढ़ | गंगानगर, जोधपुर, भीलवाड़ा, अलवर, बांसवाड़ा, नागौर | उष्णकटिबंधीय फसल, तापमान-15º-25º से.गे., वर्षा-न्यूनतम 50 सेमी.। मिट्टी-काली, अलुवियल जलोढ़ व गहरी दोमट। | विश्व में भारत उत्पादन एवं क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रथम स्थान पर है। राजस्थान का देश में छठा स्थान है। राज्य में कपास का अधिकांश उत्पादन नहरी सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में होता है। देश का सर्वाधिक कपास गुजरात में उत्पन्न होता है। राजस्थान में तीन तरह की कपास होती है। 1. देशी कपास (राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, झालावाड़) 2. अमेरिकन कपास (गंगानगर, बांसवाड़ा) 3. मालवी कपास (कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़)। जैसलमेर, चुरू दो ऐसे जिले हैं जहां कपास का उत्पादन बिल्कुल नहीं होता है। |
गन्ना | गंगानगर | गंगानगर | चित्तौड़गढ़, उदयपुर, बूँदी ,बांसवाड़ा, राजसमंद | उष्णकटिबंधीय जलवायु, मिट्टी- बलुई दोमट। तापमान-20º-35º से.ग्रे.। | भारत विश्व का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। देश में सर्वाधिक गन्ना उत्तरप्रदेश व महाराष्ट्र में होता है। |
धनिया | झालावाड़ | झालावाड़ | कोटा, बूंदी, चित्तौड़ | – | – |
इसबगोल | जालौर | बाड़मेर | बाड़मेर, जोधपुर, जैसलमेर,जालौर | – | भारत में प्रथम स्थान पर |
जीरा | जोधपुर | बाड़मेर | बाड़मेर, नागौर, अजमेर | छाछिया, झुलसा व उकटा जीरा के प्रमुख रोग | पूर्व में जीरा सर्वाधिक जालौर में होता था। |
हरी मैथी | नागौर | नागौर | झालावाड़, सीकर, जयपुर | – | नागौर का ताउसर गांव हरी मैथी (पान मैथी) अपनी खुशबू के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। |
तम्बाकू | जालौर | जालौर | अलवर, झुंझुनूं, कोटा | तम्बाकू की दो किस्में निकोटिना टुबेकम और निकोटिना रस्ट्रिका मुख्य है। | |
ग्वार | बीकानेर | बीकानेर | – | – | – |
राजस्थान में बागवानी फसलों के प्रमुख उत्पादक जिले (2015-16)-:
सर्वाधिक फलोत्पादन -: झालावाड़ 2. गंगानगर
फसल | प्रमुख उत्पादक जिले | फसल | प्रमुख उत्पादक जिले |
आम | बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, डूंगरपुर | मौसमी, माल्टा, कीनू | श्रीगंगानगर |
संतरा | झालावाड़(राज. के नागपुर की उपमा), कोटा, भीलवाड़ा | नींबू | भरतपुर, करौली |
अमरूद | सवाईमाधोपुर, कोटा, बूँदी | पपीता | सिरोही, टोंक, भरतपुर |
हरी मैथी | नागौर | टमाटर, मटर | जयपुर, जालौर |
तम्बाकू | अलवर, झुन्झुनूं | ईसबगोल | जालौर, बाड़मेर, जैसलमेर |
जीरा | जोधपुर, जालौर, बाड़मेर, | सौंफ | नागौर, सिरोही, टोंक |
केला | सिरोही, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ | बेर तथा आँवला | नागौर, जयपुर, जोधपुर |
अंगूर | श्रीगंगानगर, सवाईमाधोपुर | सीताफल | राजसमंद, चित्तौड़गढ़ |
अनार | पाली, जालौर, चित्तौड़, हनुमानगढ़ | शहतूत | जयपुर, बांसवाड़ा |
खरबूजा | पाली, टोंक | मेंहदी | सोजत (पाली) |
प्याज | सीकर, जोधपुर, अलवर | आलू | धौलपुर, कोटा, भरतपुर |
अफीम | चित्तौड़गढ़, बारां झालावाड़ | लाल मिर्च | सवाईमाधोपुर, जोधपुर (मथानियां) |
धनियाँ | झालावाड़, कोटा, बारां | मैथी | नागौर, कोटा, झालावाड़ |
आंवला | अजमेर, चितौडगढ़, दौसा, जयपुर। |
राजस्थान के कृषि विकास हेतु प्रयासरत संस्थाएँ
क्र.सं. | नाम | स्थापना वर्ष उद्देश्य व अन्य विवरण |
1.केन्द्रीय कृषि फार्म, सूरतगढ़ (गंगानगर) | अगस्त, 1956 | एशिया का सबसे बड़ा फार्म। सोवियत रूस के सहयोग से स्थापित किया गया। |
2.केन्द्रीय कृषि फार्म, जैतसर (गंगानगर) | कनाडा देश के सहयोग से स्थापित किया गया। | |
3.काजरी (Central Arid Zone Research Institute-CAZARI), जोधपुर | 1959 | काजरी की स्थापना 1959 में मरूस्थल वनीकरण शोध केन्द्र का पुनर्गठन कर भारत सरकार द्वारा की गई। 1966 में इसे ICAR के अधीन किया गया। काजरी का मुख्य उद्देश्य शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वन सम्पदा व कृषि का विकास करने हेतु पेड़-पौधों, मिट्टी, हल व भूमि के संबंध में व्यापक सर्वेक्षण, शोध एवं अध्ययन करना है। काजरी के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र-जैसलमेर, बीकानेर, पाली व भुज (गुजरात) में है, कृषि विज्ञान केन्द्र पाली व जोधपुर में तथा क्षेत्रीय प्रबंध व मृदा संरक्षण क्षेत्र-चाँदन गाँव (जैसलमेर) व बीछवाल (बीकानेर) में स्थापित है। |
4.राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड(Rajasthan State Agriculture Marketing Board) | 6-06-1974 | किसानों को कृषि का उचित मूल्य दिलाने के उद्देश्य से कृषि उपज मंडियों की स्थापना, मंडी प्रांगणों व ग्रामीण सम्पर्क सड़कों का निर्माण व रखरखाव करना। |
5.बेर अनुसंधान केन्द्र एवं खजूर अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर | 1978 | ‘हिलावी’ खजूर की किस्म और ‘मेंजुल’ किस्म का छुआरा का उत्पादन। |
6.राजस्थान राज्य बीज संस्था एवं जैविक उत्पादन प्रमाणीकरण | 28-03-1978 | विश्व बैंक की राष्ट्रीय बीज परियोजना के द्वितीय चरण में उत्तम गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन, विधायन एवं विपणन करने के उद्देश्य से 28 मार्च, 1978 को राजस्थान राज्य बीज निगम के नाम से गठित। अब इसका नाम राजस्थान राज्य बीज एवं जैविक उत्पादन प्रमाणीकरण संस्था कर दिया गया है। |
7.AFRI (Aried Forest Research Institute), जोधपुर | 1988 | – |
8.राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र | 2000 | तबीजी (अजमेर) में स्थापित। |
9.राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान संस्थान, सेवर, भरतपुर | 20 Oct. 1993 | – |
10.केन्द्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, दुर्गापुरा (जयपुर) | – | – |
11.राजस्थान उद्यानिकी एवं नर्सरी विकास समिति (राजहंस) | 2006-07 | राज्य में उद्यानिकी विकास को बढ़ावा देने हेतु उत्तम गुणवत्ता के पौधे के उत्पादन कार्य व आपूर्ति हेतु राज्य सरकार द्वारा गठित। |
12. राज. राज्य सहकारी क्रय विक्रय संघ लिमिटेड (राजफेड) – | 1957 | |
13. राज. राज्य सहकारी स्पिनिंग व जिनिंग मिल्स फेडरेशन लि. (स्पिनफैड) | 1992 | (1993 में कार्य प्रारम्भ) को स्पिनफैड की स्थापना गुलाबपुरा, हनुमानगढ़ व गंगापुर (भीलवाड़ा) की तीन मिलों मिलाकर की गई। |
14. तिलम संघ | जुलाई, 1990 | तिलहन फसलों की पैदावर बढ़ाने सहकारी क्षेत्र में तिलहनों की खरीद की व्यवस्था करेगा। |
15. राजस्थान उद्यानिकी व नर्सरी विकास समिति (राजहंस) | 2006-2007 | |
16. चौधरी चरणसिंह राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान -: जयपुर | 1988 |
विशिष्ट कृषि जिन्सों की मण्डियों की स्थापना : ‘उत्पादन वहाँ विपणन‘ के सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए राज्य में पहली बार निम्नलिखित विशिष्ट मण्डियाँ स्थापित की गई हैं-
क्र.सं. | नाम मुख्य/गौण मण्डी | जिन्स का नाम | क्र.सं. | नाम मुख्य/गौण मण्डी | जिन्स का नाम |
1. | मेड़ता सिटी (नागौर) | जीरा | 2. | जोधपुर | जीरा |
3. | भवानी मण्डी (झालावाड़) | सन्तरा | 4. | टोंक | मिर्च |
5. | अलवर | प्याज | 6. | श्रीगंगानगर | किन्नू |
7. | सवाई माधोपुर | अमरूद | 8. | रामगंज मण्डी (कोटा) | धनिया |
9. | अजमेर | फूल | 10. | पुष्कर-अजमेर फ.स. | फूल |
11. | चौमूँ (जयपुर) | आंवला | 12. | शाहपुरा-जयपुर फ.स. | टिण्डा |
13. | बस्सी-जयपुर फ.स. | टमाटर | 14. | छीपाबड़ौद-छबड़ा (बारां) | लहसुन |
15. | सोजतसिटी-सोजत रोड़ (पाली) | सोनामुखी | 16. | सोजतसिटी-सोजत रोड़(पाली) | मेहन्दी |
17. | भीनमाल (जालौर) | ईसबगोल | 18. | झालरापाटन(झालावाड़) | अश्वगंधा |
19. | बीकानेर (अनाज मंडी) | मूंगफली |
प्रमुख योजनाएँ और मिशन
1. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)
उद्देश्य: देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
शुरुआत: 2007-08 में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में गेहूं और दलहन पर शुरू।
वर्तमान स्थिति: इसमें अब 7 फसलें शामिल हैं।
वित्त पोषण: 2015-16 से केंद्र और राज्य का अनुपात 60:40 है।
मुख्य गतिविधियाँ: प्रमाणित बीजों का वितरण, उन्नत उत्पादन तकनीकों का प्रदर्शन, समेकित पोषण प्रबंधन (INM), जैविक खाद, सूक्ष्म तत्व, जिप्सम, समन्वित कीट प्रबंधन (IPM), कृषि यंत्र (जैसे फव्वारा, पंप सेट, पाइपलाइन, मोबाइल रेनगन), और फसल तंत्र आधारित प्रशिक्षण।
2. राष्ट्रीय तिलहन एवं ऑयल पाम मिशन (NMOOP)
उद्देश्य: तिलहन फसलों और वृक्ष जनित तेलों की उत्पादकता बढ़ाना, गुणवत्ता में सुधार कर राज्य को खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर बनाना।
राजस्थान में क्रियान्वयन: दो सब-मिनी मिशन –
मिनी मिशन-I: तिलहनी फसलों के लिए।
मिनी मिशन-III: वृक्ष जनित तिलहनी फसलों के लिए।
मुख्य गतिविधियाँ: आधारभूत एवं प्रमाणित बीज उत्पादन व वितरण, फसल प्रदर्शन, समन्वित कीट प्रबंधन, पौध संरक्षण उपकरण, जैव उर्वरक, जिप्सम, जल वितरण के लिए पाइपलाइन, कृषक प्रशिक्षण, कृषि सुधार, नवाचार, फव्वारा सेट और आधारभूत विकास।
वित्त पोषण: 2015-16 से केंद्र और राज्य का अनुपात 60:40 है।
3. राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं तकनीकी मिशन (NMAET)
उद्देश्य: कृषि विस्तार को पुनर्गठित और सशक्त करना, ताकि किसानों तक उचित तकनीक और कृषि विज्ञान की अच्छी आदतों का हस्तांतरण हो सके।
वित्त पोषण: 2015-16 से केंद्र और राज्य का अनुपात 60:40 है।
4. राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन (NMSA)
उद्देश्य: पूर्व में संचालित चार योजनाओं (राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन, राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना, राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता प्रबंधन परियोजना और वर्षा आधारित क्षेत्र विकास कार्यक्रम) को मिलाकर टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना।
शुरुआत: 2014-15 से क्रियान्वित।
वित्त पोषण: 2015-16 में केंद्र और राज्य का अनुपात 60:40 है।
शामिल सब-मिशन:
वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (RAD)
जलवायु परिवर्तन तथा टिकाऊ खेती
मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन
5. परम्परागत कृषि विकास योजना
उद्देश्य: जैविक खेती को प्रोत्साहित करना, पर्यावरण-आधारित न्यूनतम लागत तकनीक का उपयोग कर रसायनों और कीटनाशकों का प्रयोग कम करना।
शुरुआत: 2015-16 से क्रियान्वित।
विशेषता: यह राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन (NMSA) के अंतर्गत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन का ही विस्तार है।
कार्यप्रणाली: क्लस्टर (समूह) और प्रमाणन के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देना।
वित्त पोषण: केंद्र और राज्य का अनुपात 60:40 है।
6. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
उद्देश्य: किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले फसल नुकसान से सुरक्षा प्रदान करना।
शुरुआत: रबी 2015-16 के बाद राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) और संशोधित कृषि बीमा योजना (MNAIS) को बंद कर 2016 से PMFBY शुरू की गई। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इसे 15 जनवरी, 2016 को जारी किया और कैबिनेट ने 13 जनवरी, 2016 को मंजूरी दी।
प्रीमियम:
सभी खरीफ फसलों पर 2%।
सभी रबी फसलों पर 1.5%।
वाणिज्यिक व बागवानी फसलों के लिए 5%।
शेष प्रीमियम सरकार वहन करेगी।
विशेषता: ‘एक राष्ट्र-एक योजना’ थीम के अनुरूप है।
संचालन: भारतीय कृषि बीमा कंपनी लिमिटेड (AIC) द्वारा संचालित।
7. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना (PMKSY)
उद्देश्य: सुनिश्चित सिंचाई के लिए स्रोतों का सृजन करना, प्रति बूँद अधिक फसल प्राप्त करना, और ‘जल संचय’ एवं ‘जल सिंचन’ के माध्यम से सूक्ष्म स्तर पर जल संचयन करना।
शुरुआत: 1 जुलाई, 2015 को।
वित्त पोषण: केंद्र और राज्य का अनुपात 60:40 है।
शामिल योजनाएँ: त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), समन्वित जलग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP), ऑन फार्म जल प्रबंधन (OFWM) आदि।
नारा: “हर खेत को पानी, प्रति बूंद – अधिक फसल”
8. मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card)
उद्देश्य: देशभर में कृषि क्षेत्र में मिट्टी की सेहत पर ध्यान देना और आवश्यक पोषण उपलब्ध कराकर उत्पादन क्षमता बढ़ाना।
शुरुआत: 19 फरवरी, 2015 को सूरतगढ़ (गंगानगर, राजस्थान) में।
विशेषताएँ: प्रत्येक किसान को कृषि भूमि की मिट्टी की जांच हेतु कार्ड उपलब्ध कराया जाएगा, जिसमें उत्पादकता से जुड़ी जानकारियाँ और उर्वरकों के समुचित उपयोग की सलाह होगी। इस कार्ड का 3 वर्ष के अंतराल पर नवीनीकरण किया जा सकेगा।
9. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-सूक्ष्म सिंचाई (PMKSY-MI)
उद्देश्य: फसल उत्पादकता बढ़ाने और पानी बचाने के लिए ड्रिप एवं फव्वारा सिंचाई जैसी लघु सिंचाई पद्धतियों को बढ़ावा देना।
वित्त पोषण: सभी श्रेणी के कृषकों के लिए केंद्र और राज्य सरकार का अनुपात 60:40 है।
कृषि विपणन और किसान कल्याण
कृषि विपणन निदेशालय: कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने और अच्छी विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु कार्यरत है।
किसान कलेवा योजना: 2014 में शुरू, ‘सुपर’, ‘अ’ और ‘ब’ श्रेणी की मंडियों में अपनी उपज बेचने आने वाले किसानों को सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध कराना।
तेल परीक्षण प्रयोगशालाएँ: 21 चयनित कृषि उपज मंडी समितियों में कार्यरत।
महात्मा ज्योतिबा फुले मंडी श्रमिक कल्याण योजना – 2015:
प्रसूति सहायता: महिला हम्माल एवं पल्लेदार को अधिकतम दो प्रसूतिओं के लिए 45 दिन की मजदूरी के समतुल्य सहायता।
पितृत्व अवकाश: 15 दिन की मजदूरी के समतुल्य सहायता।
विवाह सहायता: महिला हम्मालों की पुत्रियों के विवाह के लिए ₹20,000 की सहायता (अधिकतम दो पुत्रियों के लिए)।
छात्रवृत्ति/मेधावी छात्र पुरस्कार: 60% या अधिक अंक प्राप्त करने वाले कर्मचारी के पुत्र/पुत्री को छात्रवृत्ति।
चिकित्सा सहायता: हम्माल को गंभीर बीमारी में सरकारी अस्पताल में भर्ती रहने पर अधिकतम ₹20,000 तक की चिकित्सा व्यय सहायता।
कृषि से जुड़े विशिष्ट तथ्य
स्थानांतरित कृषि के स्थानीय नाम: पहाड़ी क्षेत्रों में “चिमाता” और मैदानी क्षेत्रों में “दजिया”।
बाणियाँ: राजस्थान में कपास को ग्रामीण भाषा में बाणियाँ कहते हैं।
कांगणी: दक्षिणी राजस्थान के गरीब व आदिवासी बहुल शुष्क क्षेत्रों की फसल, सूखे में पशुओं के लिए चारा प्रदान करती है।
चैती (दमिश्क) गुलाब: खमनौर (राजसमंद) एवं नाथद्वारा में इसकी खेती होती है; यह सर्वश्रेष्ठ किस्म का गुलाब है।
लीलोण: रेगिस्तानी क्षेत्रों (विशेषकर जैसलमेर) में पाई जाने वाली बहुपयोगी सेवण घास का स्थानीय नाम।
घोड़ा जीरा: पश्चिमी राजस्थान (जालौर-बाड़मेर) में उत्पादित ईसबगोल का स्थानीय नाम।
पादप क्लीनिक: राज्य का पहला पादप क्लीनिक मंडोर स्थित कृषि अनुसंधान केंद्र, राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में खोला गया है।
कृषि जलवायु जोन: राजस्थान में 10 कृषि जलवायु जोन हैं, जिनमें जालोर, श्रीगंगानगर और सीकर नए जोन हैं।
संविदा खेती: राजस्थान में पहले चरण में केवल पांच जिंसों (फल, फूल, सब्जी, औषधीय पौधे और सुगंधित पौधों) के लिए लागू।
फूल मंडी: पुष्कर में। पुष्प पार्क (फ्लोरीकल्चर कॉम्प्लेक्स) खुशखेड़ा, भिवाड़ी, अलवर में है।
सोयाबीन: तिलहनी और दलहनी गुणों से युक्त फसल।
होहोबा (जोजोबा):
“पीला सोना” नाम से प्रसिद्ध।
वानस्पतिक नाम: Simmondesia Chinensis।
उत्पत्ति स्थान: सोनारन मरुस्थल, मैक्सिको।
भारत में इजरायल के सहयोग से सबसे पहले काजरी द्वारा बोया गया।
राजस्थान में इसे बढ़ावा देने के लिए 1996-97 में एजोर्प (AZORP) द्वारा इजरायल की तकनीकी मदद से ढूंड (जयपुर) और फतेहपुर (सीकर) में जोजोबा फार्म स्थापित किए गए।
अफीम:
“काला सोना” कहते हैं।
सर्वाधिक उत्पादन मध्यप्रदेश में। राजस्थान में चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, कोटा, झालावाड़ में होता है।
जैतून की पत्ती से चाय बनाने की फैक्ट्री: बस्सी (जयपुर) में स्थापित।
इंडिया मिक्स: गेहूँ, मक्का व सोयाबीन के मिश्रण का आटा।
बजेड़ा: पान का खेत।
चावर: खेतों में जुताई के बाद भूमि को समतल करने के लिए फेरा जाने वाला मोटा पाट।
हारी-भावरी कृषि: गरासिया जनजाति में प्रचलित।
कृषि दिवस और स्थापनाएँ
राष्ट्रीय महिला किसान दिवस: 15 अक्टूबर।
विश्व खाद्य दिवस: 16 अक्टूबर।
किसान दिवस: 23 दिसंबर।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना: 29 जनवरी, 1999।
राजस्थान में खाद्य सुरक्षा अधिनियम: 2 अक्टूबर, 2013।
महत्वपूर्ण संस्थान और पहल
ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट (ग्राम): 9-11 नवंबर, 2016 को जयपुर के सीतापुरा में आयोजित, जिसमें ₹4400 करोड़ के निवेश के MOU हुए। इजराइल इसमें पार्टनर देश था।
प्रथम कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना: उदयपुर में।
निजी क्षेत्र की पहली कृषि मंडी: कैथून (कोटा) में।
पहला कृषि रेडियो स्टेशन: भीलवाड़ा में स्थापित।
हॉर्टीकल्चर हब: झालावाड़ में।
प्रदेश का पहला गर्ल्स एग्रीकल्चर कॉलेज: बारां में।
राजस्थान की सबसे बड़ी फल मंडी: मुहाना मंडी (जयपुर)।
अमरूद का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस: टोंक जिले में बनाया जाएगा।
कृषि विशिष्ट तथ्य :
- बाणियाँ-कपासको राजथान में ग्रामीण भाषा में बाणियाँ कहते हैं।
- कांगणी-कांगणीदक्षिणी राजस्थान के गरीब व आदिवासी बाहुल्य शुष्क क्षेत्रों की फसल है। कांगणी सूखे की स्थिति में पशुओं के लिए चारा प्रदान करती है।
- चैती (दमिश्क) गुलाब-खमनौर(राजसमंद) एवं नाथद्वारा में इसकी खेती होती है। यह सर्वश्रेष्ठ किस्म का गुलाब है। यह किंवदन्ती है कि मेवाड़ के महाराणा रतनसिंह के शासनकाल में इसे मुगलों से मँगाकर यहां लाया गया है।
- लीलोण-रेगिस्तानीक्षेत्रों (विशेषकर जैसलमेर) में पाई जाने वाली बहुपयोगी सेवण घास का स्थानीय नाम।
- घोड़ा जीरा-पश्चिमीराजस्थान (जालौर-बाड़मेर के क्षेत्र) में बहुतायत से उत्पादित ईसबगोल का स्थानीय नाम।
- पादप क्लीनिक-राज्यसरकार ने राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में मंडोर स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र में राज्य के पहले पादप क्लीनिक को खोलने की मंजूरी दी है। राज्य में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत एक करोड़ रुपये की लागत से पाँच स्थानों पर पादप क्लीनिक खोलना प्रस्तावित है।
- राजस्थान में कृषि जलवायु जोनों की संख्या-10 है। इनमें तीन नये जोन जालोर, श्री गंगानगर, सीकर है।
- राजस्थान में ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्) द्वारा नौ कृषि विज्ञान केन्द्र खोले जाने प्रस्तावित है।
- राजस्थान में संविदा खेती पहले चरण में केवल पांच जिंसों (फल, फूल, सब्जी, Medicinal Plant एवं सुगन्धित पौधों) के लिए लागू की गई है।
- राजस्थान में फूल मंडी पुष्कर में है। जबकि पुष्प पार्क (फ्लोरिकल्चर कॉम्प्लेक्स) खुशखेड़ा, भिवाड़ी, अलवर में है।
- सोयाबीन – तिलहनी और दलहनी गुणों से युक्त फसल है।
- होहोबा (जोजोबा) –पीला सोना नाम से प्रसिद्ध, का वानस्पतिक नाम Simmondesia Chinensis है। उत्पत्ति स्थान सोनारन मरूस्थल, मैक्सिको। जबकि भारत में यह इजरायल के सहयोग से सबसे पहले काजरीद्वारा बोया गया। इसकी खेती को राजस्थान में बढ़ावा देने के लिए 1996-97 में एक प्रोजेक्ट एजोर्प (Association of the Rajasthan Zozoba Plantation & Research Project) द्वारा इजरायल की तकनीकी मदद से ढूंड (जयपुर) में 45 हैक्टेयर क्षेत्र एवं फतेहपुर (सीकर) 70 हैक्टेयर क्षेत्र में जोजोबा फार्म स्थापित किये गये हैं। तेल का क्वथंनाक व गलनांक अत्यधिक होता है।
- अफीम को काला सोना कहते हैं। इसका उत्पादन सर्वाधिक मध्यप्रदेश में होता है। राजस्थान में चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, कोटा, झालावाड़ में होता है।
- देश का 50% धनिया, 60% जीरा, 47% मेथी, 33% बाजरा, 29% जौ, 40% मोठ, 7% दलहन, 9% गेहूँ, 8.4% मक्का का उत्पादन राजस्थान में होता है।
- जैतून की पत्ती से चाय बनाने की फैक्ट्री बस्सी (जयपुर) में स्थापित की गई है।
- India Mix -: गेहूँ, मक्का व सोयाबीन के मिश्रण का आटा
कृषि की अनूठी प्रथाएँ और विविधता
स्थानांतरित कृषि:
राजस्थान में स्थानांतरित कृषि को सामान्यतः “वालरा” कहा जाता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में इसे “चिमाता” और मैदानी क्षेत्रों में “दजिया” के नाम से जाना जाता है।
मिश्रित कृषि: कृषि और पशुपालन को साथ-साथ करना मिश्रित कृषि कहलाता है, जो राज्य के कई हिस्सों में आम है।
जैविक खेती:
झालावाड़ में जैविक खेती के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की गई है।
राजस्थान का डूंगरपुर पहला जैविक जिला है (भारत का प्रथम जैविक राज्य सिक्किम है)।
कृषि संबंधी महत्वपूर्ण आंकड़े और नीतियाँ
कृषि भूमि का उपयोग: राजस्थान राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 49.53% क्षेत्र कृषि उपयोग में आता है।
निर्भरता: राजस्थान में 62% कामगार अपनी आजीविका के लिए कृषि और संबद्ध क्षेत्रों पर निर्भर हैं।
वानिकी और बंजर भूमि:
वानिकी के अंतर्गत 27.52 लाख हेक्टेयर (8.03%) क्षेत्रफल है।
बंजर भूमि के अंतर्गत 38.95 लाख हेक्टेयर (11.37%) क्षेत्रफल है।
शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल 180.24 लाख हेक्टेयर (52.60%) है।
कृषि वर्ष: राजस्थान में कृषि वर्ष जुलाई से जून तक होता है।
कृषि जोतों का आकार:
2015-16 में कृषि जोतों का औसत आकार 2.73 हेक्टेयर था, जो 2010-11 के 3.07 हेक्टेयर से 11.07% की कमी दर्शाता है।
2015-16 में राजस्थान में क्रियाशील कृषि जोतों की संख्या 76.55 लाख थी।
जोत के प्रकार: सीमान्त जोत (40.12%), लघु जोत (21.90%), अर्द्ध मध्यम (18.50%), मध्यम (14.79%), और बड़े आकार की जोत (4.69%)।
सिंचाई:
राजस्थान में सर्वाधिक सिंचाई कुओं एवं नलकूपों से होती है। जयपुर में कुओं और नलकूपों से, जबकि भीलवाड़ा में तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई होती है।
उत्पादन में अग्रणी:
अनाज में गेहूँ, तिलहन फसलों में राई व सरसों, और दालों में चने का सर्वाधिक उत्पादन होता है।
कुल कृषित क्षेत्रफल सर्वाधिक बाड़मेर जिले में और न्यूनतम राजसमंद जिले में है।
राजस्थान को 10 कृषि जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया गया है।
प्रमुख फसलें और उत्पाद:
झालावाड़ को “राजस्थान का नागपुर” कहते हैं, क्योंकि यहाँ संतरे का अधिक उत्पादन होता है।
मूंगफली उत्पादन के कारण बीकानेर के लूणकरणसर को “राजस्थान का राजकोट” कहा जाता है।
झालावाड़ में धनिया का सर्वाधिक उत्पादन होता है।
सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक जिले कोटा-बारां हैं।
सर्वाधिक मसाले बारां जिले में उत्पादित होते हैं।
इसबगोल का सर्वाधिक उत्पादन जालौर जिले में होता है।
माल्टा का उत्पादन गंगानगर जिले में प्रमुखता से होता है।
दमश्क गुलाब (चैती गुलाब) की खेती खेमनौर (हल्दीघाटी) में की जाती है।
मूंग और उड़द फसलें भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए उगाई जाती हैं।
कृषि अनुसंधान और संस्थान
स्पाईस पार्क: राज्य का पहला स्पाईस पार्क रामगंज मंडी (कोटा) में है।
केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र उद्यानिकी अनुसंधान केन्द्र: बीछवाल (बीकानेर) में ICAR द्वारा स्थापित।
वाटर मैनेजमेंट पार्क: पदमपुर (श्रीगंगानगर) में।
किन्नू मंडी: श्रीगंगानगर में।
एशिया का सबसे बड़ा कृषि केंद्र: सूरतगढ़ में।
अंतर्राष्ट्रीय उद्यानिकी नवाचार एवं प्रशिक्षण केंद्र: जयपुर में, नीदरलैंड के सहयोग से स्थापित।
कृषि विज्ञान केंद्र: प्रथम कृषि विज्ञान केंद्र फतेहपुर (सीकर) में 1976 में स्थापित।
केंद्रीय बेर अनुसंधान संस्थान: बीकानेर।
केंद्रीय खजूर अनुसंधान संस्थान: बीकानेर।
केंद्रीय ऊँट अनुसंधान संस्थान: बीकानेर।
देश का पहला जैविक खेती अनुसंधान केंद्र: झालावाड़ में।
एशिया का पहला ऑलिव ग्रीन टी संयंत्र: बस्सी (जयपुर)।
देश की प्रथम जैतून रिफाइनरी: लूणकरणसर (बीकानेर)।
अमरूद का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस: टोंक जिले में।
ऊन मंडी खजूर अनुसंधान केंद्र: बीकानेर (1978 में स्थापित)।
कृषि संबंधी योजनाएं और पहल
संशोधित मौसम आधारित फसल बीमा योजना: 20 जून, 2018 को शुरू हुई।
राजस्थान फसल ऋण माफी योजना 2018: बांसवाड़ा से शुरू हुई।
प्रथम ग्राम (ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट): 9-11 नवंबर, 2016 को सीतापुरा (जयपुर) में आयोजित।
राजस्थान की प्रथम कृषि नीति: 26 जून, 2013 को जारी।
राजस्थान राज्य भंडारण निगम की स्थापना: 30 दिसंबर, 1957 को।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना: 12 जुलाई, 1982 को।
राजीव गांधी कृषक साथी योजना: 9 दिसंबर, 2009 से।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना: 29 जनवरी, 1999।
किसान कलेवा योजना: जनवरी 2014 में शुरू।
महात्मा ज्योतिबा फूले मंडी श्रमिक कल्याण योजना: 11 अप्रैल, 2015 को शुरू।
राजस्थान कृषि प्रसंस्करण व कृषि प्रोत्साहन नीति: 20 अक्टूबर, 2015।
राजस्थान किसान आयोग का गठन: 26 नवंबर, 2011 को (अध्यक्ष + 8 सदस्य)।
मुख्यमंत्री बीज स्वावलंबन योजना: जून 2017 में शुरू।
राजस्थान का पहला मैंगो फेस्टिवल: बांसवाड़ा में।
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना: 23 अगस्त 2017 को शुरू (खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय द्वारा)।
राजस्थान मसाला निर्यात प्रोत्साहन योजना: 2015।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन: 2005-06 से राज्य के 24 जिलों में क्रियान्वित (केंद्र और राज्य का हिस्सा 60:40)।
पहली किसान कंपनी: बकानी (झालावाड़) में गठित की गई।
मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना: 1 फरवरी, 2019 से, सहकारी संघों को दूध की आपूर्ति करने वाले 5 लाख पशुपालकों को ₹2 प्रति लीटर का अनुदान।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: 19 फरवरी, 2015 को सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर) में शुरू हुई।
फसलें, रोग और संबंधित शब्दावली
ज्वार: इसे “ऊँट की फसल” और “गरीब की रोटी” कहा जाता है।
बाजरा: इसका जन्म स्थान अफ्रीका को माना जाता है।
धान के खेत: इनसे मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है।
दलहनी फसलें: सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल मोठ है।
गोचनी/बेझड़: गेहूँ, चना और जौ का मिश्रण।
इंडिया मिक्स: गेहूँ, मक्का और सोयाबीन के मिश्रण का आटा।
अंकुरित चना: इसमें विटामिन C पाया जाता है।
सरसों के तेल में तीखापन: इरुसिक अम्ल के कारण।
भारत में अनुमोदित पहली जी.एम. फसल: कपास।
गन्ना: मूल रूप से भारतीय पौधा है।
ठंडी खाद: गाय एवं सूअर की खाद।
किसान खाद की उपमा: कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (CAN) को।
पेजिंग: भूमि में मूंगफली बनने की क्रिया।
गरीब का घी: तिल को।
रिले क्रॉपिंग: एक वर्ष में एक ही खेत में चार फसलें बोना।
बाजरा का रोग: “हरी बाली” रोग बाजरा फसल में होता है।
जीरा फसल के रोग: छाछिया, झुलसा और उकटा।
बजेड़ा: पान का खेत।
चावर: खेतों में जुताई के बाद भूमि को समतल करने के लिए फेरा जाने वाला मोटा पाट।
हारी-भावरी कृषि: गरासिया जनजाति में प्रचलित कृषि का रूप।
होहोबा (पीला सोना) के कृषि फार्म: ढूंढ़ (जयपुर) व फतेहपुर (सीकर)।
केमल क्रॉप: ज्वार।
रेडग्राम तथा पीजन पी: अरहर फसल को दी जाती है।
जलेबी पेड़: इसमें गैसीय विषपान करने की क्षमता सबसे अधिक होती है।
सर्वाधिक तेल: अरण्डी के बीजों में पाया जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
कृषि गणना: भारत में कृषि गणना हर 5 वर्ष में कृषि एवं सहकारिता विभाग करता है।
प्रथम कृषि गणना: 1970-71
दसवीं कृषि गणना: 2015-16
शस्य गहनता: राजस्थान की औसत शस्य गहनता 140-142% है।
डार्क जोन: राज्य में कुल 249 जोन हैं जिसमें से 209 डार्क जोन घोषित किए जा चुके हैं।
विभिन्न उत्पादन:
पीसीकल्चर: मत्स्य पालन।
सेरीकल्चर: रेशम उत्पादन।
वर्मीकल्चर: केंचुआ उत्पादन।
पोमोलॉजी: फल उत्पादन।
हॉर्टीकल्चर: बागवानी उत्पादन।
भारत में प्रथम स्थान: राजस्थान का बाजरा, सरसों, धनिया, जीरा, मेथी, ग्वार, मोठ फसलों के उत्पादन में प्रथम स्थान है।
सबसे बड़ी फल मंडी: राजस्थान की सबसे बड़ी फल मंडी मुहाना मंडी (जयपुर) है।
पहला गर्ल्स एग्रीकल्चर कॉलेज: बारां में।
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