Mahajanapada Period
महाजनपद काल: एक ऐतिहासिक अवलोकन
छठी शताब्दी ईसा पूर्व (6th Century BC) का समय भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था। इस दौरान कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए:
द्वितीय नगरीकरण: हड़प्पा सभ्यता के बाद, भारत में द्वितीय नगरीय क्रांति की शुरुआत हुई। लोहे के व्यापक उपयोग ने कृषि उत्पादन को बढ़ाया, जिससे बड़ी-बड़ी बस्तियों और नगरों का विकास हुआ।
धार्मिक और सामाजिक बदलाव: वैदिक काल की यज्ञ और कर्मकांडी परंपराएं कम होने लगीं। सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों ने जैन धर्म और बौद्ध धर्म जैसे नए धार्मिक आंदोलनों को जन्म दिया। इन धर्मों ने कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया।
राजनीतिक विकास: छोटे जनपदों के स्थान पर शक्तिशाली और बड़े राज्यों, जिन्हें महाजनपद कहा गया, का उदय हुआ।
प्रमुख स्रोत और 16 महाजनपद
उस समय के साहित्यिक स्रोतों, जैसे कि बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय और महावस्तु, और जैन ग्रंथ भगवतीसूत्र, में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। हालाँकि, इन ग्रंथों में महाजनपदों के नाम कुछ अलग-अलग हैं।
अंगुत्तर निकाय के 16 महाजनपद:
अंग, मगध, काशी, कौशल, वज्जि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पांचाल, मत्स्य, शूरसेन, अश्मक, अवंति, गांधार, कम्बोज।
महावस्तु के 16 महाजनपद:
इसमें गांधार के स्थान पर शिबि और कम्बोज के स्थान पर दर्शाण का उल्लेख है।
भगवतीसूत्र के 16 महाजनपद:
अंग, बंग, मगह (मगध), मलय, मालव, कच्छ, वच्छ (वत्स), गच्छ, लाढ (लाट), पाढ्य (पौंड्र), वज्जि, मोलि (मल्ल), काशी, कौशल, अवध, संभुत्तर।
महाजनपद काल की मुख्य विशेषताएँ
लोहे का उपयोग: इस काल की प्रगति का मुख्य कारण लोहे का प्रचुर मात्रा में उपयोग था।
द्वितीय नगरीकरण: यह भारतीय इतिहास में द्वितीय नगरीकरण का युग था।
प्रमुख नगर: चम्पा, राजगृह, वैशाली, वाराणसी, साकेत और कौशाम्बी जैसे नगर इस काल में प्रमुखता से उभरे।
मुद्रा प्रणाली: व्यापार और विनिमय के लिए आहत मुद्राएँ (पंच-मार्क सिक्के) पहली बार प्रचलन में आईं।
शासन प्रणाली: महाजनपदों में दो तरह की शासन प्रणालियाँ थीं:
राजतंत्रात्मक: शासन का प्रमुख राजा होता था। 14 महाजनपदों में यही व्यवस्था थी।
गणतंत्रात्मक: शासन गण या संघ द्वारा चलाया जाता था। वज्जि संघ (वैशाली) और कुशीनारा के मल्ल जैसे दो महाजनपदों में गणतंत्रात्मक व्यवस्था के प्रमाण मिलते हैं।
धार्मिक क्रांति: यह काल धार्मिक क्रांति के लिए भी जाना जाता है। इसी समय महावीर स्वामी (जैन धर्म) और गौतम बुद्ध (बौद्ध धर्म) का उदय हुआ।
सोलह महाजनपद: एक सिंहावलोकन
प्राचीन भारत में, छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास, सोलह महाजनपदों का उदय हुआ। ये शक्तिशाली राज्य थे, जिनमें से प्रत्येक की अपनी राजधानी और विशिष्ट भौगोलिक पहचान थी। नीचे दी गई तालिका में इन महाजनपदों, उनकी राजधानियों और वर्तमान स्थानों का विवरण दिया गया है।
क्र.सं. | महाजनपद | राजधानी | वर्तमान शहर या स्थान |
1. | अंग | चम्पा | बिहार के मुंगेर और भागलपुर जिले। महाभारत में चम्पा का नाम मालिनी भी मिलता है। |
2. | मगध | राजगृह | बिहार के गया और पटना जिलों में गंगा और सोन नदी के दक्षिण में। |
3. | काशी | वाराणसी | वर्तमान वाराणसी और आसपास का क्षेत्र। |
4. | कौशल | श्रावस्ती | उत्तरप्रदेश का अवध क्षेत्र, जिसमें अयोध्या और फैजाबाद शामिल हैं। बुद्ध काल में इसकी दो राजधानियाँ थीं – श्रावस्ती (उत्तरी भाग) और कुशावती (दक्षिणी भाग)। |
5. | वज्जि | वैशाली | गंगा नदी के उत्तर में, बिहार में वैशाली का क्षेत्र। |
6. | मल्ल | कुशीनारा | बिहार के पटना और उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में। यह कुशीनगर एवं पावा जनपदों का गणराज्य संघ था। |
7. | चेदि | शक्तिमती | यमुना के किनारे बुन्देलखण्ड एवं झाँसी के बीच का क्षेत्र। |
8. | वत्स | कौशाम्बी | गंगा नदी के दक्षिण में इलाहाबाद और उसके आसपास का क्षेत्र। यह पौरव वंश से संबंधित था। |
9. | कुरु | इन्द्रप्रस्थ | दिल्ली, मेरठ और गाजियाबाद के आसपास का क्षेत्र। |
10. | पांचाल | काम्पिल्य | गंगा, यमुना के मध्य, रूहेलखण्ड, रामपुर, बरेली, बदायूं और फरुखाबाद जिले। |
11. | मत्स्य | बैराठ | राजस्थान का करौली, भरतपुर और अलवर बैराठ का क्षेत्र। पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का एक वर्ष यहाँ बिताया था। |
12. | शूरसेन | मथुरा | मथुरा, वृन्दावन और आसपास का ब्रज क्षेत्र। यहाँ यदुवंशी राजाओं का शासन था। |
13. | अश्मक | पोटन | दक्षिण में गोदावरी नदी के तट पर। यह एकमात्र महाजनपद था जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित था। |
14. | अवन्ति | उज्जयिनी | वर्तमान मालवा और नर्मदा नदी से लेकर उत्तर में ग्वालियर तक। यहाँ का लौह उद्योग बहुत विकसित था। इसके दक्षिणी भाग की राजधानी महिष्मती थी। गौतम बुद्ध के समय यहाँ का शासक चण्डप्रद्योत था। |
15. | कम्बोज | राजपुर | जम्मू-कश्मीर, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान तक फैला हुआ था। |
16. | गांधार | तक्षशिला | पश्चिमोत्तर सीमा के देश, जो आज भारत में नहीं हैं। इसमें पेशावर एवं रावलपिंडी के जिले शामिल थे। |
मगध साम्राज्य का उदय
मगध का पहला उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। यह राज्य वर्तमान पटना और गया जिलों में फैला हुआ था, जिसकी सीमाएँ उत्तर में गंगा, पश्चिम में सोन और पूर्व में चम्पा नदी से घिरी थीं। विंध्य पर्वत श्रृंखला इसके दक्षिण में थी।
राजधानी: मगध की प्रारंभिक राजधानी गिरिव्रज थी, जो बाद में राजगृह बनी। इसके बाद इसे पाटलिपुत्र में स्थानांतरित कर दिया गया।
प्रारंभिक शासक: महाभारत के अनुसार, मगध में बृहद्रथ वंश की नींव बृहद्रथ ने रखी थी।
आर्थिक समृद्धि: आसपास के क्षेत्र में लोहे की प्रचुरता के कारण मगध एक आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य था।
साम्राज्यिक विस्तार: छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, हर्यक वंश (544-412 ई.पू.) के साथ मगध का साम्राज्यिक विस्तार शुरू हुआ। इसके बाद नागवंश (412-344 ई.पू.) और नंद वंश (344-322 ई.पू.) के शासनकाल में यह विस्तार जारी रहा।
विशाल साम्राज्य: इन शक्तिशाली राजवंशों के तहत, मगध पूरे उत्तरी भारत में एक विशाल साम्राज्य के रूप में स्थापित हुआ।
मगध साम्राज्य के प्रमुख शासक
मगध साम्राज्य का उत्थान भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इस साम्राज्य के विस्तार में विभिन्न राजवंशों और शासकों का महत्वपूर्ण योगदान था।
1. हर्यक वंश (544-412 ई.पू.)
बिम्बिसार (544-492 ई.पू.):
वह हर्यक वंश के संस्थापक थे।
उन्होंने वैवाहिक संबंधों (कोसल देवी, चेल्लना, क्षेमा और वासवी से विवाह) और युद्धों के माध्यम से अपने राज्य का विस्तार किया। उन्हें कोसल से काशी दहेज में मिला।
बिम्बिसार गौतम बुद्ध और महावीर दोनों के समकालीन थे।
उनकी राजधानी राजगृह थी, जिसे वास्तुकार महागोविन्द ने बनाया था।
उनके प्रसिद्ध राजवैद्य जीवक थे।
उनकी हत्या उनके पुत्र अजातशत्रु ने की थी।
अजातशत्रु (492-460 ई.पू.):
उनका बचपन का नाम कुणीक था।
वह एक साम्राज्यवादी शासक थे, जिन्होंने वज्जि संघ और मल्ल संघ को हराया।
उन्होंने अपनी राजधानी राजगृह का दुर्गीकरण (किलेबंदी) करवाया और पाटलीग्राम (पाटलीपुत्र) की स्थापना की।
अजातशत्रु ने 483 ई.पू. में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया था।
उन्हें ‘पितृहंता’ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या की थी। बाद में उनके पुत्र उदायिन ने उनकी हत्या कर दी।
उदायिन (460-444 ई.पू.):
उन्होंने मगध की राजधानी को पाटलीपुत्र स्थानांतरित किया, जो गंगा और सोन नदी के संगम पर स्थित था।
वह जैन धर्म के अनुयायी थे।
2. शिशुनाग वंश (412-344 ई.पू.)
शिशुनाग (412-394 ई.पू.):
शिशुनाग वंश के संस्थापक थे।
उन्होंने अवंति, वत्स और कौशल राज्यों को जीतकर मगध में मिलाया।
उन्होंने वैशाली को मगध की दूसरी राजधानी बनाया।
कालाअशोक (394-366 ई.पू.):
उन्हें पुराणों में काकवर्ण कहा गया है।
उन्होंने वैशाली के स्थान पर पाटलिपुत्र को पुनः राजधानी बनाया।
उन्होंने द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया।
3. नंद वंश (344-322 ई.पू.)
महापद्मनन्द (उग्रसेन):
वह नंद वंश के संस्थापक थे।
पुराणों में उन्हें ‘एकराट’ और ‘सर्वक्षत्रान्तक’ (सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला) कहा गया है।
वह विंध्य पर्वत के दक्षिण में मगध साम्राज्य का विस्तार करने वाले पहले शासक थे।
घनानंद:
वह नंद वंश के अंतिम शासक थे और सिकंदर महान के समकालीन थे।
यूनानी लेखकों ने उन्हें ‘अग्रभोज’ कहा।
वह जनता में अलोकप्रिय थे और उनका शासन चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा समाप्त कर दिया गया, जिसके बाद मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई।
मगध साम्राज्य के उत्कर्ष के कारण
मगध के उत्थान के पीछे कई भौगोलिक, आर्थिक और सामरिक कारण थे:
लौह खनिज: क्षेत्र में लोहे की उपलब्धता से बेहतर हथियार और कृषि उपकरण बने।
सामरिक स्थिति: राजधानी राजगृह पाँच पहाड़ियों से घिरी थी, और पाटलिपुत्र नदियों से घिरा था, जिससे दोनों ही रणनीतिक रूप से सुरक्षित थे।
गज सेना: निकटवर्ती जंगलों में हाथियों की उपलब्धता ने मगध की सेना को और शक्तिशाली बनाया।
ईरानी एवं यूनानी आक्रमण
इस काल में भारत पर विदेशी आक्रमण भी हुए, जिन्होंने भारतीय राजनीति और कला पर गहरा प्रभाव डाला।
1. ईरानी आक्रमण (522-486 ई.पू.)
डेरियस-I (दारा): यह प्रथम ईरानी आक्रांता था। उसने गांधार, कम्बोज और सिंध प्रांत पर अधिकार कर लिया, जो उसके साम्राज्य का 20वाँ प्रांत बन गया।
2. यूनानी आक्रमण (327 ई.पू.)
सिकंदर महान:
वह मकदूनिया (मेसेडोनिया) के शासक फिलिप द्वितीय के पुत्र थे।
उन्होंने 327 ई.पू. में भारत में प्रवेश किया।
तक्षशिला के शासक आम्भि ने बिना लड़े उनकी अधीनता स्वीकार कर ली।
हाइडेस्पेस का युद्ध (झेलम नदी के पास): यह युद्ध सिकंदर और राजा पोरस (पुरु) के बीच हुआ, जिसमें सिकंदर विजयी रहा। पोरस की बहादुरी से प्रभावित होकर सिकंदर ने उसका राज्य वापस लौटा दिया।
सिकंदर ने अपनी जीत और अपने घोड़े बेऊकेफला की याद में निकैया और बेऊकेफला नामक दो नगरों की स्थापना की।
323 ई.पू. में बेबीलोन में उनकी मृत्यु हो गई।
भारत में केवल 19 महीने बिताने के बावजूद, सिकंदर के आक्रमण ने गांधार कला शैली जैसी भारतीय कला पर यूनानी प्रभाव छोड़ा।