शैवाल

 

परिचय :

शैवाल एक थेलोफाइटस है।

-थेलोफाइटस ऐसे पादप होते है। जिनका शरीर जड़, तना एवं पत्तियों में बटाँ हुआ नहीं होता है।

शैवाल पर्णहरित युक्त होते है।

शैवालों में संवहन उत्तक (Vascular Tissue) का अभाव होता है।

संवहन

जाइलम (ये जल का संवहन करते है।)

फ्लोएम (ये भोजन का संवहन करते हैं।)

Facts:- जाइलम एवं फलोएम मिलकर संवहन पूल का निर्माण करते है।

-शैवाल पादप जगत का सदस्य है।

-शैवालों के अध्ययन के विज्ञान को एलगोलॉजी या फाइकोलोजी कहते है।

F.E. फ्रिश को फाइकोलॉजी का जनक कहा जाता है।

-जबकी M.O.P. आयंगर को भारतीय फाइकोलॉजी का जनक कहा जाता है।

-शैवाल सबसे पुराने (आघ/Primitive) पौधों का विशाल समूह है।

शैवालों के सामान्य लक्षण :

-शैवाल सामान्यतः जलीय पादप होते है।

-इनका शरीर थैलस जैसा होता है।

-ये एककोशिकीय एवं बहुकोशिकीय दोनों प्रकार के होते है।

-सामान्यतः शैवाल यू‌कैरियोटिक कोशिकाएँ है।

नोट :- नील हरित शैवाल प्रौकेरियोटिक कोशिका है।

  •  शैवाल की कोशिका की कोशिका भित्ति (Cell wall) सेल्यूलोज एवं पेक्टिन नामक पदार्थों की बनी होती है।

 

 —   शैवाल की कोशिकाओं में हरित लवक (Chaloroplast) पाये जाते है।

इन हरित लवकों में प्रोभूजक (पाइरेनोइड) पाये जाते है।

इन पाइरेनोइड्स में स्टार्च के रूप में खाद्य पदार्थों का संचय होता है।

संचय होने वाला खाद्य पदार्थ सामान्यतः तो स्टार्च (मण्ड) के रूप में ही होता है। लेकिन कुछ पाइरेनोइड्स में यह संचित पदाथ वसा या तेल के रूप में भी होता है।

शैवालों में जनन की सामान्य विधि विखण्डन द्वारा होने वाला कायिक जनन है।

शैवालों के जीवन चक्र में पीढ़ी एकान्तरण पाया जाता है।

शैवालों की कोशिकाओं में पर्णहरित पाया जाता है।

पर्णहरित की उपस्थिति के कारण की शैवाल प्रकाश संश्लेषण करते है।

प्रकाश संश्लेषण करने के कारण शैवाल स्वपोषित होते है।

Facts

1. कुछ शैवाल जिनकी लम्बाई 18 मीटर तक होती है, उनहे समुन्द्र के वृक्ष (Trees of the seas) कहते है।

शैवालों का वर्गीकरण :

सन् 1935 में एफ.ई. फ्रिश ने शैवालों को 11 वर्गों में विभाजित किया।

फ्रिश ने यह प्रकाशन अपनी पुस्तक “The structure and Reproduction of the algae” में किया।

फ्रिश के वर्गीकरण का आधार वर्णक संचित खाद्य पदार्थ एवं कशाभिकाऐं है।

वर्णकों के आधार पर शैवालों का वर्गीकरण :

अधिकांश शैवालों में विशेष प्रकार के रासायनिक यौगिक पाये जाते है जो शैवाल कोशिकाओं को विशेष प्रकार के रंग प्रदान करते है।

रंग प्रदान करने वाले ये रसायन यौगिक वर्णक कहलाते है।

शैवालों में प्रायः चार प्रकार के वर्णक पाये जाते है।

(i) क्लोरोफिल

(ii) जैन्थोफिल

(iii) कैराटीन

(iv) फाइकोबिलिन

पादप जगत के अन्तर्गत शैवालों के तीन समूह है-

(1) लाल शैवाल

(2) भूरे शैवाल

(3) हरे शैवाल

1. लाल शैवाल Red Algae

शैवाल के इस समूह में R-फाइकोइरिथ्रिन (R = Red) नामक लाल वर्णक प्रचूर मात्रा में पाया जाता है।

लाल शैवालों को रोडोफाइटा (रोडो लाल, फाइटॉन पौधा) नामक पादप जगत में रखा गया है।

अधिकांश लाल शैवाल Marine (समुन्द्री) होते है।

लाल शैवाल, प्रवाल भितियों (Coral Reefs) का निर्माण करते है।

प्रवाल भित्तियों का निर्माण कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₂) द्वारा होता है।

नोट :- हार्वेएल्ला ऐसा शैवाल है जो रंगहीन तथा परजीवी होता है।

लाल शैवालों की कोशिका भित्तियों में फाइकोकोलॉइड नामक पदार्थ पाया जाता है।

फाइकोकोलॉइडों में सल्फर नामक पदार्थ पाया जाता है।

लाल शैवालों की कोशिका भित्ति में भोज्य पदार्थ पलोरिडिअन स्टार्च तथा घुलनशील शर्करा फ्लोरिडासाइड के रूप में संचित होती है।

जिलीडिअम तथा ग्रेसीलेरिया नामक लाल शैवालों से अगर-अगर (Agar-agar) नामक पदार्थ का औद्योगिक उत्पादन किया जाता है।

Agar-agar का उपयोग कृत्रिम संवर्धन माध्यम बनाने में किया जाता है।

कुछ लाल शैवाल जैसे पॉरफाइरा, रोडीमेनिया, पामेरिया तथा गाइगार्टिना इत्यादि का भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।

नोट :- पॉरफाइरा नामक लाल शैवाल की जापान में उथले पानी में खेती की जाती है।

(2) भूरे शैवाल Brown Algae

भूरे शैवालों की कोशिककाओं में फ्यूकोजैन्थिन नामक भूरा वर्णक पाया जाता है।

इस वर्णक के कारण ही ये शैवाल भूरे रंग के होते है।

भूरे शैवालों को फीओफाइटा नामक पादप जगत में रखा गया है।

भूरे शैवालों के लगभग 200 वंश व 2000 जातियाँ है।

भूरे शैवाल उष्ण (Warmer) जल में पाये जाते है।

नोट :- सारगैसम, उष्ण जल में पाया जाने वाला सर्वविदित शैवाल है।

भूर शैवालों का थैलस शरीर तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

1. होल्डफास्ट : इसकी सहायता से शैवाल चट्टानों पर मजबूती से चिपका रहता है।

2. वृन्त : यह तने जैसी लम्बी संरचना होती है।

3. लैमिना: ये पत्तियों जैसी संरचना होती है। जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करती है।

नोट :- भूरे शैवालों में कुछ कोशिकाऐ लम्बे तन्तुओं में परिवर्तित हो जाती है, ये लम्बे तन्तु लैमिना से लेकर हॉल्डफास्ट तक भोजन का संवहन करने का कार्य है। इन तंतुओं का तूर्य तन्तु (Trumpet hyphae) कहते है।

‘भूरे शैवालों की भित्ति पर फाइकोकोलॉइड नामक पदार्थ की परत होती है।

यह पदार्थ शैवालों को सूखने एवं ढण्ड से बचाता है।

फाइकोकोलॉइड में ऐलजिनिक अम्ल पाया जाता है।

भूरे शैवालों में भोजन का संग्रहण लैमिनेरिन एवं मैनिटोल के रूप में होता है।

(3) हरे शैवाल Green Algae

ये हरे रंग के शैवाल होते है।

इनके हरे रंग का कारण इनमें क्लोरोफिल का अधिक प्रभावी होना है।

हरे शैवाल पादप जगत के क्लोरोफाइटा नामक प्रभाग में रखे जाते है।

ये शैवाल समुद्री जल तथा अलवणीय जल दोनों में पाये जाते है।

नोट :-

) कॉलियोकीटि नामक शैवाल अन्य पादपों पर उगते है। इस कारण इसे अधिपादपीय शैवाल कहते है। (Epiphytic)

(1 (2) हाइड्रा व जूक्लोरेला (zoochlorella) दोनों शैवाल साथ-साथ जीवन यापन करते है। अतः ये सहजीवी है।

शैवालों का आर्थिक महत्व/Economic Importance of Algae

1. कृषि में उपयोगि शैवाल : कुछ शैवाल जैसे नोस्टॉक एनाबिना नामक शैवाल वायुमण्डल की गैस नाइट्रोजन को यौगिक के रूप में बदल कर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते है। जिससे भूमि की उपजाऊता बढ़ती है।

कुछ अन्य शैवाल जैसे फ्यूकस, मेक्रोसिस्टिस व सरगासम आदि का उपयोग खादों (manure) के रूप में किया जाता है।

2. उद्योगों में उपयोगी शैवाल: कुछ शैवाल जैसे लेमिनेरिया व फ्यूकस के द्वारा क्रमशः आयोडीन व ब्रोमीन नामक रसायन पदार्थ प्राप्त

किये जाते है। जिनका उद्योगों में महत्व होता है।

सरगासम नामक शैवाल से कृत्रिम ऊन बनाई जाती है।

कुछ समुद्री शैवालों से प्रापत एलजिन नामक पदार्थ का उपयोग आसक्रीम व रबर उद्योगों में किया जाता है।

एलजिन का उपयोग टाईपराइटर मशीन के रोलर एवं अग्निसह फिल्मों के निर्माण में भी किया जाता है।

डायटम नामक शैवाल का उपयोग पेट्रोलियम उत्पादन में किया जाता है।

कोन्ड्रस नामक शैवाल का उपयोग कॉस्मेटिक सामग्री, बूट पॉलिश व शैम्पू आदि के निर्माण में किया जाता है।

3. भोजन में उपयोगी शैवाल : शैवालों में मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट, विटामिन व अकार्बनिक पदार्थ प्रचूर मात्रा में पाये जाते है।

जेलिडियम व ग्रेसीलेरिया नामक शैवाल से अगर अगर (Agar-Agar) नामक पदार्थ प्राप्त होता है। जिसका उपयोग जैली एवं आइसक्रीम बनाने में किया जाता है।

– क्लोरेला में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन्स तथा विटामिन्स पाये जाते है।

स्पाइरूलिना नामक शैवाल भी भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है।

4. औषधियों में उपयोगी शैवाल

क्र.स.

शैवाल

पदार्थ

उपयोगी औषधी

1.

क्लोरेला

क्लोरेलीन

प्रतिजैविक (antibiotic)

हानिकार शैवाल

कुछ शैवाल पुष्पी पौधों पर परजीवी के रूप में रहते हुए पौधों को नुकसान पहुँचाते है।

सिफेल्युरोस (cephaleuros) नामक हरा शैवाल चाय के पौधों पर गेरूई (Red Rust of Tea) नामक रोग पैदा करता है।

माइक्रोसिस्टिस, एनाबीना व ओसिलेटोरिया नामक शैवाल पानी में बदबू व विषाक्तता उत्पन्न करते है।

पानी के बदबूदार एवं विषाक्त होने को जल उफान (Water Bloom) कहते है।

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