व्यंजन संधि-

-स्वर + व्यंजन, व्यंजन + स्वर, व्यंजन + व्यंजन

यदि किसी स्वर के बाद व्यंजन आ जाए या व्यंजन के बाद स्वर आ जाए अथवा व्यंजन के बाद व्यंजन ही आ जाए तो, व्यंजन के उच्चारण और लेखन में जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं;

जशत्व व्यंजन संधि-

क्/च/ट्/त्/प् + घोष वर्ण (पंचम वर्ण को छोड़कर) = ग/ज/ड्/द/ब्

यदि वर्ग के प्रथम वर्ण क्/च्/ट्/त्/प् के बाद कोई घोष वर्ण आ जाए, (लेकिन पंचम वर्ण को छोड़कर) तो क्/च्/दृ/त्/प् का अपने ही वर्ग का तीसरा अर्थात् ग्/ज्/ड्/द/ब् हो जाता है; जैसे-

वाक् + यंत्र = वाग्यंत्र

वाक् + देवी = वाग्देवी

ऋक् + वेद = ऋग्वेद

वाक् + हरि = वाग्घरि

दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम

दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन

प्राक् + ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक

सम्यक् + ज्ञान = सम्यग्ज्ञान

– दिक् + विजय = दिग्विजय

वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता

वाक् + दान = वाग्दान

अच् + अन्त = अजन्त

अच् + आदि = अजादि

– चित् + रूप = चिद्रूप

– उत् + हार = उद्धार

– सत् + गुण = सद्गुण

– भवत् + ईय = भवदीय

– जगत् + ईश = जगदीश

– वृहत् + आकार = वृहदाकार

भगवत् + गीता = भगवद्गीता

भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति

– उत् + हरण = उद्धरण

– पत् + हति = पद्धति

– षट् + आनन = षडानन

– षट् + ऋतु = षड्ॠतु/षड्तु

– षट् + रूप = षरूप/षडूप

– अप् + ज = अब्ज

– अप् + द = अब्द

– सुप् + अन्त = सुबन्त

– तिप् + आदि = तिबादि

– सुप् + आदि = सुबादि

क्/च्/ट्/त्/प् + पंचम वर्ण = ङ्, ञ, ण, न्, म्
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