भारत की ग्रीन हाइड्रोजन क्रांति
2030 तक वैश्विक बाजार में 10% हिस्सेदारी और 10 MTPA निर्यात का लक्ष्य
नई रिपोर्ट संकेत देती है: भारत हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में विश्व अग्रणी बन सकता है—2030 तक 10% वैश्विक हिस्सेदारी हासिल करने और प्रति वर्ष लगभग 10 मिलियन टन (MTPA) निर्यात करने की क्षमता के साथ।
ग्रीन हाइड्रोजन (GH2) क्या है?
परिचय: ग्रीन हाइड्रोजन वह हाइड्रोजन है जो इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा तैयार होती है, जहाँ सौर, पवन या जलविद्युत जैसी नवीकरणीय ऊर्जा से जल (H2O) को हाइड्रोजन (H2) और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, बायोमास गैसीफिकेशन के जरिए भी हाइड्रोजन-समृद्ध गैस उत्पन्न कर GH2 प्राप्त की जा सकती है।
मुख्य उपयोग क्षेत्र
- परिवहन: फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहन (FCEV), उड्डयन, शिपिंग तथा रेल
- उद्योग: उर्वरक, रिफाइनरी, इस्पात एवं अन्य कठिन-डीकार्बोनाइज़ेशन क्षेत्र
- ऊर्जा: दीर्घावधि ऊर्जा भंडारण व विद्युत उत्पादन में सहायक
भारत की GH2 महत्वाकांक्षाएँ — MAPE
- M – Market Leadership (बाज़ार नेतृत्व): 2030 तक वैश्विक GH2 बाजार (100+ MMT अनुमानित) का ~10% हिस्से पर कब्ज़ा।
- A – Abatement of Emissions (उत्सर्जन में कमी): प्रति वर्ष ~50 MMT CO2 घटाना—भारत के NDC व नेट-ज़ीरो लक्ष्यों के अनुरूप।
- P – Powering Production (उत्पादन विस्तार): 2030 तक 5 MMT/वर्ष घरेलू उत्पादन क्षमता विकसित करना।
- E – Employment Creation (रोज़गार सृजन): R&D, निर्माण, भंडारण, लॉजिस्टिक्स व निर्यात में 6 लाख+ हरित नौकरियाँ।
इस दिशा में राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, ग्रीन हाइड्रोजन प्रमाणन योजना तथा कांडला, पारादीप और तूतीकोरिन जैसे GH2 हब महत्वपूर्ण आधार तैयार कर रहे हैं।
हाइड्रोजन के अन्य प्रकार (झलक)
- ग्रे हाइड्रोजन: प्राकृतिक गैस/कोयले से—CO2 उत्सर्जन उच्च।
- ब्लू हाइड्रोजन: ग्रे + कार्बन कैप्चर व स्टोरेज (CCS) के साथ।
- पिंक/पर्पल: परमाणु ऊर्जा-आधारित इलेक्ट्रोलिसिस से।
- टर्क्वॉइज़: मीथेन पिरोलिसिस से ठोस कार्बन उपोत्पाद के साथ।
भारत की GH2 इकोसिस्टम की चुनौतियाँ — CAGE
- C – Cost Barrier (लागत): शुरुआती चरण में लागत ~US$ 4–4.5/Kg, ग्रे की तुलना में अधिक।
- A – Access to Capital (पूँजी): इलेक्ट्रोलाइज़र व नवीकरणीय क्षमता के लिए बड़े अग्रिम निवेश की जरूरत।
- G – Gaps in Infrastructure (अवसंरचना): पाइपलाइन, भंडारण और रीफ्यूलिंग नेटवर्क का अभाव।
- E – Economic Viability (आर्थिक व्यवहार्यता): प्रभावी कार्बन-प्राइसिंग में विलंब से फॉसिल-आधारित विकल्प सस्ते दिखते हैं।
आगे का रास्ता — POWER रणनीति
- P – Pricing Carbon: कार्बन टैक्स/बाज़ार तंत्र शीघ्र लागू कर लेवल प्लेइंग फील्ड बनाना।
- O – Obligation Mandates: इस्पात, उर्वरक, रिफाइनिंग जैसे क्षेत्रों में ग्रीन हाइड्रोजन खरीद दायित्व (GHRO) लागू करना।
- W – Widen Infrastructure Base: इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण, भंडारण, पाइपलाइन व निर्यात गलियारे—EU, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे साझेदारों के साथ।
- E – Economic Reallocation: जीवाश्म सब्सिडी का पुनर्विनियोजन; कर प्रोत्साहन व Viability Gap Funding प्रदान करना।
- R – Risk Pooling via Demand Aggregation: संयुक्त खरीद प्लेटफॉर्म व भुगतान सुरक्षा तंत्र से विश्वसनीय अनुबंध व प्रतिस्पर्द्धी मूल्य सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
- स्पष्ट नीतिगत संकेत, प्रतिस्पर्धी लागत और मज़बूत अवसंरचना के साथ भारत GH2 में वैश्विक नेतृत्व हासिल कर सकता है।
- CAGE बाधाओं को POWER रोडमैप से संबोधित करना सफलता की कुंजी है।
- रोज़गार, निर्यात व उत्सर्जन-घटाव — तीनों मोर्चों पर GH2 भारत के लिए गेम-चेंजर सिद्ध हो सकता है।