ब्रायोफायटा (Bryophyta)

ब्रायोफायटा (Bryophyta)

  1. ब्रायोफायटस ‘प्रथम स्थलीय पादप’ है जिन्हें वनस्पति जगत का उभयचरी वर्ग (Amphibians of plant kingdom) कहते हैं। ब्रायोफायटा शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुई हैं। (bryon = moss, phyton = plants) ब्रायोफायटा के अध्ययन को ब्रायोलोजी (Bryology) कहते है। प्रोफेसर एस.आर. कश्यप (S.R. Kashyap) को भारतीय ब्रायोफायटा विज्ञान का जनक (Father of Indian Broyology) कहा जाता है।
  2. सामान्य लक्षण (General characters)
  3. ये नम, ठण्डे स्थानों जैसे छायादार मैदानों, आर्द्र चट्टानों, वृक्षों के स्तम्भों, पुरानी दीवारों तथा दलदली भूमि पर पाये जाते हैं।
  4. पादप शरीर सूकाय सदृश्य (thalloid) होता हैं। अर्थात् इनका शरीर जड़ और प्ररोह (shoot) में विभक्त नहीं होता है। -जड़ें अनुपस्थित होती हैं। इनके स्थान पर अध्यक्ष सतह पर एक कोशिकीय या बहुकोशिकीय मूलाभास (rhizoids) पाये जाते हैं।
  5. इस वर्ग के विकसित पादपों में ‘तने’ तथा ‘पत्तियों’ जैसी रचनाएँ पाई जाती है। जिनमें ‘वास्तविक संवहन ऊतकों’ (true
  6. vascular tissues) का अभाव होता है।
  7. मुख्य पादप युग्मकोदभिद् पीढ़ी (gametophiytic generation) को निरूपित करता है। बीजाणुदभिद् (sporophyte) पीढ़ी
  8. युग्मकोदभिद् पीढ़ी पर आश्रित होती हैं।
  9. नर जननांगो (male reproductive organs) को पुंधानी (antheridium) तथा मादा जननांगो को स्त्रीधानी (archego-
  10. nium) कहते हैं।
  11. जननांग बहुकोशिक बन्ध्य जैकेट (sterile jacket) से घिरे रहते है।
  12. निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। तथा पुमणु (antherozoids) रसायन अनुचलन प्रदर्शित करते है।
  13. बीजाणुदभिद पाद (foot), सीटा (seta) तथा केप्सूल (capsule) में विभेदित रहता है।
  14. केप्सूल में अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप समबीजाणु बनते हैं जो अंकुरित होकर नया पादप बनाते है।
  15. वर्गीकरण (Classification)- ब्रायोफायटा को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-
  16. हिपैटिसी (Hepaticae)
  17. एन्थोसिरोटीज (Anthocerotae)
  18. मसाई (Musci)

टेरिडोफाइटा

टेरिडोफाइटा (Pteridophyta)

टेरिफोइटा संवहनी अपुष्पोद्भिद् (vascular cryptogams) स्थलीय पादपों का समूह है। इस वर्ग के पादपों में स्पष्ट पीढ़ी एकान्तरण (alternation of generation) पाया जाता है। मुख्य पादप द्विगुणित बीजाणु‌द्भिद पीढ़ी (diploid sporophytic generation) को निरूपित करते हैं। टेरिडोफाइटों में आदिम संवहनी तंत्र (primitive vascular system) विद्यमान होता है।

सामान्य लक्षण

मुख्य पादप बीजाणु‌द्भिद (sporophyte) होता है। पादप शरीर जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित रहता है।

संवहन ऊतक (vascular tissues) में जाइलम (xylem) तथा पलोएम (phloem) होते है। परन्तु जाइलम में वाहिकाएँ (vessels) तथा फ्लोएम में सह कोशिकाएँ (companion cells) अनुपस्थित होती हैं।

इन पादपों में बीज तथा पुष्प निर्मित नहीं होते हैं अतः इन्हें बीज रहित (seedless) तथा पुष्प रहित (flowerless)

बीजाणुधानियाँ कुछ विशेष प्रकार की पत्तियों पर उत्पन्न होती है। जिन्हें बीजाणुपर्ण (sporophyll) कहते हैं।

टेरिडोफाइटों में समबीजाणुकता (homospory) या विषमबीजाणुकता (heterospory) पाई जाती है।

युग्मकोद्भिद् या प्रोथैलस (prothallus) प्रायः हरा, स्वपोषित (autotrophic) तथा बहुकोशिक रचना होती है।

प्रोथैलस पर नर जननांग पुंधानी (antheridium) तथा मादा जननांग स्त्रीधानी (archegonium) उत्पन्न होते हैं। जननांग बहुकोशीय एवं जैकेट युक्त होते हैं।

– पुंधानी में पुमणु (antherozoids) तथा स्त्रीधानी में अण्डकोशिका (egg cell) का परिवर्धन होता है।

वर्गीकरण (Classification) – टेरिडोफाइटा के अनेक वर्गीकरण हैं। लगभग सभी वैज्ञानिकों ने इस समूह को मुख्यतः निम्न चार उपविभागों में बाँटा है।

1. साइलाप्सिडा (Psilopsida)

2. लाइकोप्सिडा (Lycopsida)

3. स्फीनोप्सिडा (Sphenopsida)

4. टेरोप्सिडा (Pteropsida)

1. साइलोप्सिडा-

(i) जड़ एवं पत्तियाँ अनपुस्थित होती है।

(ii) पानी एवं खनिज लवणों का अवशोषण मूलाभासों के द्वारा होता है।

(iii) इसके अधिकांश पौधे जीवाश्मों के रूप में पाये जाते है।

2. लाइकोप्सिडा

(i) इनको क्लब मॉस (club moss) कहते है।

(ii) इनकी पत्तियाँ छोटी होती है।

उदाहरण – लाइकोपोडियम, सिलैजीनेला आदि।

3. स्फीनोप्सिडा

(i) इनको हार्सटेल (horsetail) कहते हैं।

(ii) पत्तियाँ छोटी-छोटी होती है।

(iii) तना खोखला एवं संधित होता है।

उदाहरण – इक्वीसीटम

4. टेरोप्सिडा

(i) इनकों फर्न (fern) कहते है।

(ii) पत्तियाँ बड़ी होती है।

उदाहरण – ड्रॉयोप्टेरिस, टेरिस टेरिडियम आदि।

 

शैवाक (लाइकेन्स)

 

  • परिचय –शैवाल एवं कवकों का परस्पर मिलकर रहना लाइकैन होता है।

लाइकेन (शैवाक) में कवक वातावरण में जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करते है।

  • जबकी शैवाल प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाने का कार्य करते है।
  • प्रकाश संश्लेषण के दोहरान कार्बोहाइड्रेट का निर्माण होता है। जिसे कवक ग्रहण करता है।
  • लाइकेन सहजीविता (Symbiosis) का उत्तम उदाहरण है।
  • लाइकेन अधिकांश भाग कवक का होता है। जिसे माइकोबायोन्ट कहते है।
  • लाइकेन सामान्यतः चट्टानों पर पाये जाते है।
  • लाइकेन्स का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Licbens)
  • लाइकेनो द्वारा लाभ व हानि दोनों प्रकार की क्रियाएँ होती है।
  • लाभदायक लाइकेन :
  • 1. औषधि के रूप में :
  • 1. अस्त्रिया व क्लैडोनिया से प्रतिजैविक औषधि प्राप्त होती है।
  • 2. क्लेडोनिया पिक्सनोटा व लोबेरिया पल्मोनेरिया नामक लाइकेन्स द्वारा क्षय रोग के उपचार हेतु औषधी बनाई जाती है।
  • II. भोजन के रूप में:
  • 1. पार्मेलिया नामक लाइकेन का उपयोग आदिवासियों द्वारा भोजन के रूप में किया जाता है।
  • 2. एवर्निया पुनेस्ट्री का उपयोग बैकरी उत्पादों में किया जाता है।
  • 3. क्लोरोनिया रेन्जिफेरीना नामक लाइकेन को धुर्विय प्रदेशों की बर्फ पर चलने वाले रेन्डीचर नामक कुत्ते खाते है। इस कारण
  • III. रंजक (Dye’s) के रूप में:
  • इस लाइकेन को रेन्डियर मॉस भी कहते है।
  • 1. रोसेला टिंक्टोरिया से लिटमस पत्र बनाऐ जाते है।
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