यहां पौधों के आर्थिक महत्व से संबंधित जानकारी को एक सुव्यवस्थित और पढ़ने में आसान प्रारूप में प्रस्तुत किया गया है।
पादपों का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Plants)
वनस्पति विज्ञान की वह शाखा जिसमें पौधों के आर्थिक महत्व और उनसे प्राप्त उत्पादों का अध्ययन किया जाता है, आर्थिक वनस्पति विज्ञान कहलाती है।
(A) औषधीय महत्व के पादप
* सर्पगंधा
* वानस्पतिक नाम: रॉवल्फिया सर्पेन्टाइना
* कुल: एपोसाइनेसी
* विशेष: इसका फल ड्रूप (Drup) प्रकार का होता है। इसमें सर्पेंटीन, रॉवल्फिनिन और रेसरपीन जैसे एल्कलॉइड पाए जाते हैं।
* आर्थिक महत्व:
* पागलपन की दवा में।
* सर्पदंश और बिच्छू के काटने पर।
* प्रसव के समय गर्भाशय संकुचन के लिए।
* कृमिहर के रूप में।
* अफीम/पोस्त
* वानस्पतिक नाम: पेपेवर सोमनिफेरम
* कुल: पेपावरेसी
* विशेष: इसका फल संपुट (capsule) प्रकार का होता है। यह पौधे के लेटेक्स से प्राप्त होता है। इसमें कोडीन, मॉर्फिन, पेपावरिन और नारकोटिन नामक एल्कलॉइड पाए जाते हैं।
* आर्थिक महत्व:
* दर्द निवारक के रूप में।
* कफ, उल्टी और दस्त में मॉर्फिन का उपयोग।
* निद्राकारक और नशे के रूप में।
* कुनैन/सिनकोना
* वानस्पतिक नाम: सिनकोना ऑफिसिनेलिस
* कुल: रूबियेसी
* विशेष: यह सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त होती है। इसमें कुनैन और सिनकोडीन जैसे एल्कलॉइड होते हैं।
* आर्थिक महत्व:
* मलेरिया के उपचार में।
* काली खांसी, निमोनिया और गठिया में लाभदायक।
* एंटीसेप्टिक के रूप में।
* प्लीहा (spleen) के बढ़ने पर भी उपयोगी।
* हींग (Ferula)
* वानस्पतिक नाम: फेरूला असाफोएटिडा
* कुल: अम्बेलीफेरी
* विशेष: यह पौधे की जड़ों से प्राप्त एक कड़वा और तीखी गंध वाला रेजीन है।
* आर्थिक महत्व:
* कफ और दमा के उपचार में।
* कब्जहर के रूप में।
* मिर्गी के उपचार में।
* हल्दी (Turmeric)
* वानस्पतिक नाम: कुर्कमा लौंगा
* कुल: जिंजीबरेसी
* विशेष: यह भूमिगत प्रकंद (rhizome) से प्राप्त होती है। इसका पीला रंग कुकुरमीन नामक एल्कलॉइड के कारण होता है।
* आर्थिक महत्व:
* मधुमेह रोग में।
* यकृत रोग, पीलिया और बुखार में।
(B) तेल प्रदान करने वाले पादप
तेल में मुख्य रूप से ओलिक अम्ल पाए जाते हैं। इनका उपयोग पेंट, वार्निश, पॉलिश, सौंदर्य प्रसाधन, स्याही और साबुन उद्योग में होता है।
* सरसों (Mustard)
* वानस्पतिक नाम: ब्रेसिका कैम्पेस्ट्रिस
* कुल: क्रूसीफेरी/ब्रेसिकेसी
* विशेष: यह एक रबी की फसल है और भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके तेल में एलिल आइसोथायोसाइनेट नामक रसायन के कारण तीखी गंध आती है। इसका फल सिलिकुआ प्रकार का होता है।
* आर्थिक महत्व:
* खाना पकाने के तेल के रूप में।
* खली का उपयोग पशु आहार में।
* चमड़ा उद्योग में।
* मूंगफली (Groundnut)
* वानस्पतिक नाम: एराकिस हाइपोजिया
* कुल: लेग्युमिनोसी
* विशेष: यह एक खरीफ की फसल है। इसका फल भूमिगत और लोमेंटस प्रकार का होता है। बीजों में 40-50% तेल होता है।
* आर्थिक महत्व:
* तेल का उपयोग हाइड्रोजनीकरण द्वारा वनस्पति घी बनाने में।
* फसल-चक्रण (Crop-rotation) में उपयोगी, क्योंकि इसकी जड़ों में राइजोबियम जीवाणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं।
* इसके बीज विटामिन A और B के अच्छे स्रोत हैं।
* नारियल (Coconut)
* वानस्पतिक नाम: कोकस न्यूसीफेरा
* कुल: पामेसी/एरिकेसी
* विशेष: यह मुख्य रूप से केरल, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है। इसका फल अष्ठिल (Drupe) प्रकार का होता है। तेल बीज के भ्रूण-पोष (endosperm) से प्राप्त होता है।
* आर्थिक महत्व:
* सौंदर्य प्रसाधनों में।
* इसकी खली को ‘पूनक’ कहते हैं, जो पौष्टिक पशु आहार है।
* इसका पानी पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
* अरण्ड (Castor)
* वानस्पतिक नाम: रिसिनस कंयूनिस
* कुल: यूफोरबिएसी
* विशेष: इसका फल रेग्मा (Regma) प्रकार का होता है।
* आर्थिक महत्व:
* साबुन, पेंट, वार्निश और चमड़ा उद्योग में।
* इसके तेल का उपयोग हवाई जहाज के इंजनों में स्नेहक (lubricant) के रूप में होता है।
(C) रेशे प्रदान करने वाले पौधे
* मूंज
* वानस्पतिक नाम: सेकेरम मूंजा
* कुल: ग्रेमिनी
* विशेष: इसका तना सेंटा कहलाता है। इसके तने और पत्तियों को पीटकर रस्सीयाँ बनाई जाती हैं।
* कपास
* वानस्पतिक नाम: गॉसीपियम स्पीशीज
* कुल: मालवेसी
* विशेष: यह एक वर्षीय पौधा है। इसके बीज के चारों ओर रेशे पाए जाते हैं, जिन्हें लिंट कहते हैं। इसके फल को डोडा भी कहा जाता है।
* आर्थिक महत्व:
* कपड़ा और रूई बनाने में।
* बीजों से बनी खली पशु आहार के रूप में।
* ज्वालारोधी वस्त्र बनाने में।
* सन (Sunn)
* वानस्पतिक नाम: क्रोटेलेरिया जुन्सिया
* कुल: लेग्युमिनोसी
* विशेष: इसका फल संपुट (Capsule) प्रकार का होता है। तनों से बास्ट नामक रेशे प्राप्त होते हैं।
* आर्थिक महत्व:
* मछली पकड़ने के जाल बनाने में।
* सिगरेट और टिशू पेपर बनाने में।
* हरी खाद के रूप में भी उपयोग होता है।
* भाँग (Hemp)
* वानस्पतिक नाम: कैनाबिस सैटाइवा
* कुल: कैनाबिनिस
* विशेष: इसके रेशे मजबूत और जल के प्रति अपारगम्य होते हैं।
* आर्थिक महत्व:
* इसके रेशों का उपयोग इंजनों को पैक करने में।
* बीजों से प्राप्त एल्कलॉइड्स का उपयोग औषधि निर्माण में।
(D) मसाले प्रदान करने वाले पौधे
* लौंग (Clove)
* वानस्पतिक नाम: सिजीजियम ऐरोमेटिकम
* कुल: मिरटेसी
* विशेष: यह पुष्प की कलिका होती है और एक वृक्ष से 60 साल तक प्राप्त की जा सकती है।
* आर्थिक महत्व:
* इत्र और अचार बनाने में।
* टूथपेस्ट में और पान के साथ उपयोग।
* सौंफ (Fennel)
* वानस्पतिक नाम: फीनिकुलम वल्गेर
* कुल: अम्बेलीफेरी
* विशेष: यह पौधे का पुष्पक्रम वाला भाग होता है। इसका फल क्रीमोकार्प भिदुर प्रकार का होता है। इसमें सुगंध और मीठा स्वाद फेनकोन के कारण होता है।
* आर्थिक महत्व:
* साबुन, औषधि और इत्र निर्माण में।
* अचार, सब्जी और मसाले के रूप में।
* बच्चों के पेट की बीमारियों में।
* लाल मिर्च (Red Chilly)
* वानस्पतिक नाम: केप्सिकम एनुअम
* कुल: सोलेनेसी
* विशेष: इसका फल बेरी प्रकार का होता है। इसका तीखापन कैप्सीसिन नामक पदार्थ के कारण होता है।
* आर्थिक महत्व:
* विटामिन-C का अच्छा स्रोत।
* चटनी, सलाद और अचार में।
* उत्तेजक और वातहर के रूप में।
* काली मिर्च (Black Pepper)
* वानस्पतिक नाम: पाइपर नाइग्रम
* कुल: पाइपेरेसी
* विशेष: इसका फल गोलाकार और ड्रूप प्रकार का होता है। इसकी तीव्र गंध पाइपरीन के कारण होती है।
* आर्थिक महत्व:
* पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में।
* कफ और सर्दी-जुकाम के काढ़े में।
* आँखों की रोशनी के लिए भी फायदेमंद मानी जाती है।