कोशिका (Cell)

कोशिका को सर्वप्रथम 1665 में रॉबर्ट हुक ने कार्क के टुकड़े में देखा। रॉबर्ट हुक द्वारा देखी गई कोशिका मृत कोशिका थी। 1674 में एण्टॉन वॉन ल्यूवेन हॉक ने जीवित पादप कोशिका को देखा।

एम.जे. श्लाइडन व थियोडर श्वान ने कोशिका सिद्धान्त (Cell Theory) प्रस्तुत की। इस सिद्धान्त के अनुसार-

1. प्राणी तथा पौधों के शरीर कोशिकाओं के बने होते हैं। कोशिका जीवों के शरीर की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है।

2. नई कोशिका की उत्पत्ति पूर्ववर्ती कोशिका से होती है।

सबसे बड़ी जन्तु कोशिका शुतुरमुर्ग का अण्डा

मानव शरीर की सबसे बड़ी कोशिका (शुक्राणु (नर में)

मानव शरीर की सबसे छोटी कोशिका अण्ड (मादा में)

सबसे लम्बी पादप कोशिका एसीटैबुलेरिया (शैवाल)

सबसे छोटी कोशिका PPLO (Pleuro Pneumonia like Organism) नामक माइकोप्लाज्मा

मानव शरीर की सबसे लम्बी कोशिका तंत्रिका कोशिका

कोशिका सिद्धांत का अपवाद वायरस कोशिका दो प्रकार की होती है

1. प्रोकैरियोटिक

2. यूकेरियोटिक

प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं (अपकेन्द्रकीय कोशिकाएँ)

(Pro = Primitive, Karyao = nucleus) इन कोशिकाओं में आवरण युक्त केन्द्रक का अभाव होता है। आवरण रहित आनुवांशिक पदार्थ पाया जाता है इसे केन्द्रकाम (Nuclcleoid) कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया, हरितलवक, अन्तर्द्रव्यी जालिका जैसे दोहरी झिल्ली से आवरित कोशिकांग का अभाव होता है। हिस्टोन प्रोटीन का अभाव होता है। राइबोसोम 70s प्रकार के

उदाहरण जीवाणु, नील हरित शैवाल, माइकोप्लाज्मा।

यूकैरियोटिक (सुकेन्द्रकीय कोशिकाएँ) (Eu = well, Karyon = nucleus) कोशिकाएं इन कोशिकाओं में संगठित झिल्ली युक्त सुस्पष्ट केन्द्रक के साथ विकसित कोशिकांग पाये जाते हैं। राइबोसोम = 80s प्रकार के उदाहरण बहुकोशिकीय प्राणी कोशिका, मनुष्य की कोशिकाएँ

(1) कोशिका भित्ति (Cell Wall) पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति पादप कोशिका को निश्चित आकार प्रदान करती है। जन्तु कोशिकाओं में कोशिका भित्ति का अभाव होता है। पादपों में यह सेल्यूलोज से निर्मित होती है। यह मध्य पटलिका, प्राथमिक भित्ति, द्वितीयक भित्ति व तृतीय भित्ति में विभेदित होती है। मध्य पटलिका का निर्माण कोशिका विभाजन के दौरान होता है तथा यह कैल्शियम व मैग्नीशियम पैक्टेट की बनी होती है।


कोशिकांग (Cell Organelles)
अंतःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum)
अंतःप्रद्रव्यी जालिका की खोज पोर्टर ने की थी। यह दोहरी झिल्ली वाला कोशिकांग है, जो दो प्रकार का होता है:
* चिकनी अंतःप्रद्रव्यी जालिका (SER)
* खुरदरी अंतःप्रद्रव्यी जालिका (RER), जिस पर राइबोसोम होते हैं।
* कार्य: कोशिका कंकाल का निर्माण कर उसे निश्चित आकार और आकृति प्रदान करना।
लाइसोसोम (Lysosome)
इसकी खोज क्रिस्टियन डी डुवे ने की थी। इसे “आत्मघाती थैली” (Suicidal Bag) भी कहते हैं, क्योंकि इसमें पाए जाने वाले एंजाइम कोशिका के ही कोशिकांगों का पाचन कर देते हैं, जिससे कोशिका नष्ट हो जाती है।
* कार्य:
* फेगोसाइटोसिस और पिनोसाइटोसिस द्वारा बाहरी पदार्थों का पाचन।
* अंतःकोशिकीय पदार्थों का पाचन।
* स्वलयन द्वारा रोगग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करना।
राइबोसोम (Ribosome)
पादपों में इसकी खोज रॉबिन्सन और ब्राउन ने सेम की जड़ों में की, जबकि जंतु कोशिका में पैलाडे ने इसे खोजा।
* प्रोकैरियोटिक कोशिका में यह 70s और यूकैरियोटिक कोशिका में 80s प्रकार का होता है।
* इसे “प्रोटीन फैक्ट्री” और “कोशिका का इंजन” भी कहा जाता है।
* कार्य: प्रोटीन का संश्लेषण करना।
लवक (Plastid)
यह केवल पादप कोशिका में पाया जाता है (अपवाद: यूग्लीना)।
* लवक की खोज हेकल ने की, और ए.एफ.डब्ल्यू. शिम्पर ने इन्हें ‘लवक’ नाम दिया।
* रंग के आधार पर यह तीन प्रकार के होते हैं:
* अवर्णी लवक (ल्यूकोप्लास्ट): ये रंगहीन होते हैं और इनका मुख्य कार्य भोजन का संग्रह करना है।
* एमाइलोप्लास्ट: स्टार्च का संग्रह।
* इलियोप्लास्ट: वसा का संचय।
* एल्यूरोप्लास्ट/प्रोटीनोप्लास्ट: प्रोटीन का संचय।
* वर्णी लवक (क्रोमोप्लास्ट): इनमें पर्णहरित को छोड़कर अन्य रंग (लाल, नारंगी, पीले) के वर्णक होते हैं।
* हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट): ये हरे रंग के लवक हैं और प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं।
* हरित लवक के तरल भाग को स्ट्रोमा कहते हैं, जहाँ अप्रकाशिक अभिक्रिया होती है।
* ग्रेना भाग में प्रकाशिक अभिक्रिया (Hill Reaction) होती है।
* DNA पाए जाने के कारण यह माइटोकॉन्ड्रिया की तरह अर्ध-स्वायत्त (Semiautonomous) कोशिकांग है।
केन्द्रक (Nucleus) – कोशिका का नियंत्रक केंद्र
* खोज: रॉबर्ट ब्राउन ने ऑर्किड पौधे की कोशिकाओं में की।
* अध्ययन: केन्द्रक का अध्ययन कैरियोलॉजी कहलाता है।
* यह स्तनधारियों की परिपक्व RBCs और पौधों की परिपक्व चालनी नलिकाओं को छोड़कर लगभग सभी जीवित कोशिकाओं में पाया जाता है।
* प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में यह अस्पष्ट और नग्न DNA के रूप में होता है, जिसे न्यूक्लियॉइड या जीनोफोर कहते हैं।
* भाग: केन्द्रक झिल्ली, केन्द्रिका, केन्द्रक द्रव्य, क्रोमेटिन पदार्थ।
* कार्य: कोशिका के कार्यों पर नियंत्रण करना।
न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic Acid)
1. DNA (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड)
* संरचना: 1953 में वॉटसन और क्रिक ने इसका द्वि-कुंडलीय (Double Helical) मॉडल प्रस्तुत किया, जिसके लिए उन्हें 1962 में नोबेल पुरस्कार मिला।
* विशेषताएं:
* व्यास: 20 Å
* क्षारक युग्मों के बीच दूरी: 3.4 Å
* एक कुंडलन की लंबाई: 34 Å
* एक कुंडलन में नाइट्रोजनी क्षारकों की संख्या: 10
* घटक: डीऑक्सीराइबोस शर्करा, फॉस्फोरिक अम्ल, और चार नाइट्रोजन-क्षार: एडेनिन (A), थाइमिन (T), साइटोसिन (C), और गुआनिन (G)।
* इसमें A = T और C = G के बीच बंधन होता है।
* कार्य:
* कोशिका की सभी रासायनिक क्रियाओं का नियंत्रण और नियमन।
* आनुवंशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचाना।
2. RNA (राइबोन्यूक्लिक एसिड)
* उपस्थिति: मुख्य रूप से कोशिका द्रव्य और केंद्रिका में, लेकिन माइटोकॉन्ड्रिया और हरित लवक में भी पाया जाता है।
* विशेषताएं:
* यह एक रज्जुक (Single-Stranded) होता है (अपवाद: रियो वायरस, वाउंड ट्यूमर वायरस में द्वि-रज्जुक)।
* इसमें राइबोस शर्करा पाई जाती है।
* नाइट्रोजन क्षार: एडेनिन (A), यूरेसिल (U), साइटोसिन (C), और गुआनिन (G)। थाइमिन के स्थान पर यूरेसिल होता है।
* कार्य: प्रोटीन का संश्लेषण करना।
गुणसूत्र (Chromosomes)
* खोज: स्ट्रॉसबर्गर ने की, और वाल्डेयर ने इसे ‘गुणसूत्र’ नाम दिया।
* परिभाषा: कोशिका विभाजन की अंतरावस्था (Interphase) में क्रोमेटिन पदार्थ से बनने वाली धागेनुमा संरचना।
* संख्या:
* कायिक कोशिकाओं में द्विगुणित (2n) होती है।
* युग्मकों में अगुणित (n) होती है, जिसे जीनोम कहते हैं।
* कुछ रोचक तथ्य:
* जंतुओं में न्यूनतम संख्या: एस्केरिस मैगालोसिफैला (02)
* जंतुओं में अधिकतम संख्या: ओलोकैंथा (1600)
* पादपों में न्यूनतम संख्या: हैप्लोपैपस ग्रोसिलिस (04)
* पादपों में अधिकतम संख्या: ऑफियोग्लॉसस रेटिकुलेटम (1260)
* आकृति: मध्यावस्था (Metaphase) में सबसे स्पष्ट दिखाई देते हैं और ये V, J, L या छड़ के आकार के हो सकते हैं।
* प्रकार: मध्यकेंद्री (Metacentric), उपमध्यकेंद्री (Submetacentric), उपअन्तकेंद्री (Acrocentric) और अन्तकेंद्री (Telocentric)।
* विशेष गुणसूत्र:
* लैंपब्रुश गुणसूत्र: कशेरुकियों की अंडकोशिकाओं में पाए जाते हैं। खोज: रूकर्ट।
* पॉलीटीन गुणसूत्र: डिप्टेरा कीटों (जैसे मच्छर) की लार ग्रंथियों में पाए जाते हैं। इन्हें महागुणसूत्र (Giant Chromosome) भी कहते हैं। खोज: बालबियानी।
जीन (Gene)
* नामकरण: मेंडल ने इन्हें ‘कारक’ कहा था, और जोहेंसन ने इन्हें ‘जीन’ नाम दिया।
* परिभाषा: गुणसूत्रों पर उपस्थित सूक्ष्म संरचनाएं, जो आनुवंशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाती हैं।
* मनुष्य में जीनों की संख्या: लगभग 30,000।
कोशिका विभाजन (Cell Division)
एक मातृकोशिका से संतति कोशिकाओं के बनने की प्रक्रिया को कोशिका विभाजन कहते हैं।
* सर्वप्रथम रुडोल्फ विर्चो ने बताया कि नई कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से मौजूद कोशिकाओं से होती है।
* कोशिका विभाजन तीन प्रकार का होता है:
1. असूत्री विभाजन (Amitosis)
* यह सबसे सरल विधि है, जिसमें केंद्रक सीधे ही दो भागों में विभाजित हो जाता है।
* तुर्क तंतुओं (spindle fibers) का निर्माण नहीं होता।
* उदाहरण: प्रोकैरियोटिक जीव, कुछ शैवाल, कवक और प्रोटोजोआ।
2. सूत्री विभाजन (Mitosis)
* यह विभाजन है जिसमें गुणसूत्रों का द्विगुणन होता है और फिर वे संतति कोशिकाओं में समान रूप से बँट जाते हैं।
* चरण: पूर्वावस्था (Prophase), मध्यावस्था (Metaphase), पश्चावस्था (Anaphase), और अंत्यावस्था (Telophase)।
* विशेषताएं:
* मध्यावस्था: इस चरण में गुणसूत्र सबसे अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं।
* पश्चावस्था: यह सबसे छोटी अवस्था है, जिसमें गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर गति करते हैं।
* महत्व: जीवों की वृद्धि में सहायक और पुरानी/क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को नई कोशिकाओं से बदलना।
3. अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis)
* इस विभाजन में बनने वाली पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिकाओं की आधी रह जाती है।
* एक मातृ कोशिका से चार पुत्री कोशिकाएं बनती हैं।
* खोज: स्ट्रॉसबर्गर ने पादपों में इसकी खोज की, और फार्मर व मूरे ने इसे ‘मियोसिस’ नाम दिया।
* चरण: इसकी पूर्वावस्था पाँच उप-अवस्थाओं में बंटी होती है: लेप्टोटीन, जाइगोटीन, पैकीटीन, डिप्लोटीन, और डाइकाइनेसिस।
* जाइगोटीन: सूत्रयुग्मन (Synapsis) होता है।
* पैकीटीन: क्रोसिंग ओवर होता है।
* महत्व: लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों में गुणसूत्रों की संख्या को स्थिर बनाए रखना।

Scroll to Top