राजस्थान की रियासतें एवं ब्रिटिश संधियाँ, 1857 की क्रांति
राजस्थान की रियासतें एवं ब्रिटिश संधियाँ
- भारत में ईस्ट इंडिया का आगमन 1600 ई. में हुआ था।
- 1757 ई. में प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल में राजनीतिक सत्ता प्राप्त की।
- EIC द्वारा सम्पूर्ण भारत पर राजनीतिक सत्ता की स्थापना 1764ई. के बक्सर के युद्ध के पश्चात् हुई इलाहाबाद की संधि के तहत की गई।
- बक्सर युद्ध के बाद भारत में वास्तविक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना मानी जाती है।
- भारत में प्रथम सहायक संधि हैदराबाद के निजाम के साथ वर्ष 1798 में की गई।
- वर्ष 1803 में राजस्थान में सर्वप्रथम भरतपुर के महाराजा रणजीत सिंह के साथ लॉर्ड वेलेजली ने सहायक संधि की।
- उसके पश्चात् क्रमश: बख्तावर सिंह के समय अलवर के साथ, महाराजा जगत सिंह II के समय जयपुर के साथ तथा 22 दिसम्बर, 1803 को जोधपुर के साथ संधि की गई।
- गवर्नर जनरल हेस्टिंग्ज ने संधियों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की तथा उसने अधीनस्थ पार्थक्य की नीति का प्रतिपादन किया।
- चार्ल्स मेटकॉफ राजस्थान के राज्यों को अंग्रेजी संरक्षण देने के पक्ष में था।
- लॉर्ड हेस्टिंग्ज द्वारा चार्ल्स मेटकॉफ को राजपूत राज्यों से संधियाँ करने का दायित्व सौंपा गया।
- 1817-18 की संधियों में चार्ल्स मेटकॉफ तथा कर्नल जेम्स टॉड की विशेष भूमिका रही।
- राजपूताना में हेस्टिंग्ज की अधीनस्थ पार्थक्य नीति के तहत सर्वप्रथम संधि करौली के शासक के साथ की गई।
- प्रथम विस्तृत एवं व्यापक संधि दिसम्बर, 1817 में कोटा के प्रशासक झाला जालिम सिंह के साथ की गई।
- विभिन्न रियासतों के साथ की गई संधियाँ –
रियासत | शासक | संधि की तिथि | विशेष विवरण |
करौली | महाराजा हरबक्शपाल सिंह | 9 नवंबर, 1817 | यह राजस्थान की प्रथम रियासत थी जिसने सहायक संधि की।
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टोंक | अमीर खाँ पिण्डारी | 17 नवंबर, 1817 | इस सहायक संधि के तहत अमीर खाँ पिण्डारी को टोंक का नवाब बनाया गया। |
कोटा | महाराव उम्मेदसिंह-I | 26 दिसम्बर 1817 | कोटा के प्रतिनिध के रूप में सहायक संधि शिवदान सिंह, लाला हुकुमचंद तथा शेख जीवन राम ने चार्ल्स मैटकॉफ से दिल्ली में संपन्न की। |
जोधपुर | महाराजा मानसिंह | 6 जनवरी, 1818 | आसोपा बिशनराम व व्यास अभयराम ने जोधपुर की ओर से कंपनी के साथ सहायक संधि की। |
मेवाड़
| महाराणा भीमसिंह | 13 जनवरी, 1818 | मेवाड़ में भीम सिंह की ओर से ठाकुर अजीत सिंह ने कंपनी के साथ सहायक संधि संपन्न की। |
बूँदी | महाराव विष्णुसिंह | फरवरी, 1818 | – |
बीकानेर | महाराजा सूरतसिंह | 9 मार्च, 1818 | महाराजा सूरत सिंह के प्रतिनिधि ओझा काशीनाथ ने चार्ल्स मैटकाॅफ के साथ संधि संपन्न की। |
किशनगढ़ | महाराजा कल्याणसिंह | 26 मार्च, 1818 | – |
जयपुर | महाराजा जगतसिंह-II | 2 अप्रैल, 1818 | जयपुर की ओर से ठाकुर रावल बैरिसाल नाथावत ने तथा कंपनी की ओर से चार्ल्स मैटकॉफ ने संधि पर हस्ताक्षर किए। |
प्रतापगढ़ | महारावल सामंत सिंह | 5 अक्टूबर,1818 | – |
डूँगरपुर | महारावल जसवंत सिंह-II | 11 दिसम्बर, 1818 | – |
जैसलमेर | महारावल मूलराज-II | 12 दिसम्बर, 1818 | – |
बाँसवाड़ा | महारावल उम्मेदसिंह | 25 दिसम्बर, 1818 | – |
सिरोही | महाराजा शिवसिंह | 11 सितम्बर, 1823 | अधीनस्थ पार्थक्य की नीति के तहत अंतिम संधि सिरोही से संपन्न की गई। |
- अधीनस्थ पार्थक्य की नीति के तहत सर्वप्रथम करौली रियासत से तथा अंत में सिरोही से संधि की गई।
- नवम्बर, 1817 में टोंक रियासत का निर्माण किया गया तथा अमीर खाँ पिंडारी को इसका नवाब घोषित किया गया।
- ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अजमेर का क्षेत्र दौलतराव सिंधिया से वर्ष 1818 में प्राप्त किया।
- अंग्रेजों द्वारा बनाई गई अंतिम रियासत झालावाड़ थी जिसकी राजधानी झालरापाटन को बनाया गया।
- झालावाड़ रियासत के शासक झाला मदन सिंह बने।
1857 की क्रांति
- 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में हुए सैनिक विद्रोह को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की शुरूआत माना जाता है।
- 1857 के विद्रोह में राजस्थान के अधिकांश राजाओं ने विद्रोह से पृथक रहते हुए विद्रोह दमन में अंग्रेजों की सहायता की।
- 19 मई, 1857 को ए.जी.जी. लॉरेन्स को मेरठ विद्रोह की सूचना आबू में मिली।
- राजस्थान में जगह-जगह अंग्रेजी सेना के केन्द्र थे, लेकिन इनमें अंग्रेज सैनिक नहीं थे। देवली में कोटा कन्टिजेन्ट, ब्यावर में मेर रेजीमेन्ट, एरिनपुरा में जोधपुर लीजन, खैरवाड़ा में भील कोर तथा नसीराबाद में बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री थी। इन सभी छावनियों में भारतीय सैनिकों की संख्या लगभग 5000 थी।
- क्रांति के समय गुजरात के डीसा से अंग्रेज सैनिक बुलाये गये थे।
- 1857 के विद्रोह के समय राजपूताने में छः ब्रिटिश सैनिक छावनियां नसीराबाद (अजमेर), नीमच (मध्यप्रदेश), ब्यावर (अजमेर), एरिनपुरा (पाली), देवली (टोंक) व खैरवाड़ा (उदयपुर) थी।
- विद्रोह के समय राजपूताने के ए.जी.जी. (एजेन्ट टू गवर्नर जनरल) जॉर्ज पेट्रिक लॉरेन्स थे। भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग था। मारवाड़ में मोकमेसन, मेवाड़ में मेजर शावर्स, कोटा में मेजर बर्टन व जयपुर में कर्नल ईडन पॉलिटिकल एजेंट थे।
नसीराबाद छावनी
- अजमेर राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ भारी मात्रा में गोला-बारूद, सरकारी खजाना, सम्पत्ति तथा कार्यालय थे। यह सब क्रांतिकारियों के हाथों में पड़ जाने पर उनकी स्थिति अधिक मजबूत होने का भय था।
- राजस्थान के ए जी जी. सर पैट्रिक लॉरेन्स ने अजमेर की सुरक्षा हेतु वहाँ नियुक्त 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री को नसीराबाद भेजकर ब्यावर से दो मेर पलटने अजमेर बुलवा ली। साथ ही इसने कोटा कन्टिन्जेन्ट और डीसा (गुजरात) से यूरोपियन पलटन अजमेर भेजे जाने के आदेश दे दिए।
- अजमेर से बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री हटाये जाने तथा मेर पलटन को वहाँ नियुक्त कि जाने को लेकर 15वीं बंगाल नेटिव इंफैन्ट्री के सैनिकों में असंतोष बढ़ने लगा।
- इस समय दिल्ली, बंगाल तथा अवध के संदेशवाहक साधुओं तथा फकीरों के वेश में बाजारों में घुम रहे थे। ये लोग चर्बी वाले कारतूसों को विषय बनाकर सैनिकों को धर्म युद्ध के लिए प्रेरित कर रहे थे। इसी समय सरकार ने चर्बी वाले कारतूसों का विरोध होने के कारण इसके प्रयोग को बंद करने के आदेश दिए जिससे सैनिकों का संदेह और भी दृढ़ हो गया।
- नसीराबाद में विद्रोह के प्रमुख कारणों में सैनिकों पर अविश्वास, चर्बी वाले कारतूसों के प्रयोग की अफवाह व आटे में हड्डियों का चुरा मिलाया जाना (तात्कालिक कारण) था।
- इन सभी बातों को ध्यान में रखकर संभावित संघर्ष को टालने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने अंग्रेज सैनिक व बम्बई लांसर्स को नसीराबाद छावनी में गश्त लगाने का निर्देश दिया। यही नहीं उन्होंने तोपों में गोले भरवाकर तैनात कर दिये। अंग्रेज अधिकारियों के बंगाल इंफैन्ट्री के संभावित खतरे के विरूद्ध इन एहतियाती प्रबंधों ने सैनिकों को भड़का दिया। फलस्वरूप नसीराबाद छावनी में 28 मई, 1857 को 15वीं नेटिव इंफैन्ट्री के बख्तावरसिंह के नेतृत्व सैनिकों ने तोपखाने के सैनिकों को अपनी ओर मिलाकर विद्रोह कर दिया तथा तोपों पर अधिकार कर लिया। 30 मई को 30वीं नेटिव इंफैन्ट्री में भी असंतोष फूट पड़ा। छावनी को लूट लिया गया तथा अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों पर आक्रमण कर दिया। एक अधिकारी न्यूबरी के सैनिकों ने टुकड़े कर दिये। खजाना लूटकर सैनिकों ने वेतन के रूप में आपस में बांट लिया।
- क्रांतिकारी सैनिकों ने छावनी को तहस-नहस करने के बाद दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। इन सैनिकों ने 18 जून को दिल्ली पहुँचकर वहाँ पर अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर उसे पराजित किया।
- अंग्रेज अधिकारी वाल्टर व हीथकोट ने मेवाड़ के सैनिकों की सहायता से इनका पीछा किया परन्तु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई संभवतः इसका कारण यह था कि मेवाड़ व मारवाड़ के जागीरदारों ने नसीराबाद के विप्लवकारियों को अपने प्रदेश में से आसानी से गुजर जाने दिया। यह तथ्य इस बात का संकेत है कि राजस्थान के जागीरदारों तथा जनसाधारण की सहानुभूति इन सैनिकों के साथ थी।
नीमच छावनी
- कर्नल एबॉट ने अपने सभी भारतीय सैनिक अफसरों को एकत्रित कर उन्हें स्वामी भक्ति की शपथ दिलवाई।
- सैनिक मोहम्मद अली बेग ने एबॉट का प्रतिवाद करते हुए कहा कि “क्या अंग्रेजों ने अपनी शपथ का पालन किया है? क्या अंग्रेजों ने अवध को नहीं हड़प लिया? अतः हिन्दुस्तानी भी शपथ के पालन के लिए बाध्य नहीं है।“
- नसीराबाद के बाद 3 जून, 1857 को नीमच के सैनिकों ने मोहम्मद अली व हीरासिंह के नेतृत्व में विद्रोह किया।
- सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों पर हमला कर दिया। नीमच से बचकर भागे हुए चालीस अंग्रेज अफसरों को डूंगला गांव (चित्तौड़गढ़) के किसानों ने शरण दी। बाद में सूचना मिलने पर मेजर शावर्स (मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेन्ट) ने मेवाड़ की सेना की सहायता से उन्हें छुड़ाकर उदयपुर पहुँचाया जहाँ महाराणा स्वरूप सिंह ने उन्हें पिछोला झील के जगमंदिर में शरण दी।
- नीमच छावनी के कप्तान मेकडोनाल्ड ने किले की रक्षा का प्रयास किया। लेकिन किले में तैनात सेना ने भी संघर्ष शुरू कर दिया तथा सरकारी खजाना लूट लिया। इन्होंने अंग्रेज सार्जेन्ट की पत्नी तथा बच्चों का वध कर दिया।
- नीमच छावनी के सैनिक चित्तौड़गढ़, हम्मीरगढ़, बनेड़ा, शाहपुरा होते हुए निम्बाहेड़ा पहुँचे जहाँ पर अधिकारियों व जनता ने इन सैनिकों का भव्य स्वागत किया। आगे बढ़कर इन सैनिकों ने देवली छावनी को घेर लिया। देवली छावनी के सैनिकों ने भी इनका साथ दिया तथा छावनी को लूट लिया।
- इसके बाद क्रांतिकारी टोंक पहुँचे। टोंक में जून, 1857 को मीरआलम खां के नेतृत्व में जनता ने नवाब के आदेशों का उल्लंघन करते हुए विद्रोही सैनिकों का स्वागत किया तथा वहाँ से आगरा होते हुए दिल्ली पहुँचकर अंग्रेजी सेना पर भीषण आक्रमण किया।
- 8 जून, 1857 को नीमच पर कम्पनी का पुनः अधिकार। 12 अगस्त, 1857 को नीमच में पुनः विप्लव परन्तु शीघ्र शांति स्थापित।
एरिनपुरा छावनी
- 1836 में अंग्रेजों ने जोधपुर राज्य से प्राप्त धन राशि से जोधपुर लिजीयन नामक सेना तैयार की जो एरिनपुरा में थी।
- एरिनपुरा छावनी (जोधपुर रियासत, वर्तमान में पाली जिले में) के पूर्बिया सैनिकों ने 21 अगस्त, 1857 को विद्रोह किया।
- एरिनपुरा छावनी के सैनिकों ने अंग्रेज बस्तियों पर धावा बोला और ‘चलो दिल्ली-मारो फिरंगी’ नारा लगाते हुए दिल्ली प्रस्थान किया।
- खेरवाड़ा व ब्यावर सैनिक छावनी के सैनिकों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया।
जन विद्रोह के प्रमुख केन्द्र
- 1857 ई. के विद्रोह काल में कोटा एवं आउवा जन विद्रोह के प्रमुख केन्द्र थे।
- आउवा (पाली) जो जोधपुर राज्य का ठिकाना था, यहाँ अगस्त 1857 को ठाकुर कुशाल सिंह राठौड़ (चम्पावत) के नेतृत्व में विद्रोह हुआ।
- ठा. कुशाल सिंह चम्पावत की सहायता आसोप, आलनियावास, गुलर, लाम्बिया, बांता, रूदावास, खेजड़ला के जागीरदारों ने की।
- ठा. कुशाल सिंह सुगाली माता के परम भक्त थे। विद्रोह दमन के पश्चात अंग्रेजों ने महाकाली सुगाली माता के मंदिर को तोड़ दिया तथा देवी को अजमेर ले गये जो वर्तमान में पाली के बांगड़ संग्रहालय में विद्यमान है।
- 8 सितम्बर 1857 को कुशालसिंह के नेतृत्व में विद्रोही सैनिकों ने जोधपुर की राजकीय सेना (तख्तसिंह की) को बीठूडा (पाली) के युद्ध में हराया इसमें जोधपुर राज्य का सेनापति अनाड़सिंह पंवार मारा गया।
- 18 सितम्बर, 1857 को कुशालसिंह के नेतृत्व मे विद्रोहियों ने जोधपुर के पॉलिटिकल एजेन्ट मोकमेसन व ए.जी.जी. जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स की सेना को चेलावास के युद्ध में हराया। इसी युद्ध में मोकमेसन मारा गया जिसके शव को क्रान्तिकारियों ने आउवा के किले के दरवाजे पर टांग दिया।
- कुछ क्रान्तिकारी आसोप के ठाकुर शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में दिल्ली की ओर कूच कर गये परन्तु रास्ते में नारनौल में ब्रिगेडियर गेरार्ड के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना ने 16 नवम्बर, 1857 को इन्हें हरा दिया व ठाकुर शिवनाथ सिंह को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
- अंत में कर्नल होम्स की सेना ने 20 जनवरी, 1858 को आउवा के विद्रोहियों को हराया।
- सलुम्बर के जागीरदार केसरीसिंह एवं कोठारिया (मेवाड़) के जागीरदार जोधसिंह ने आउवा के ठा. कुशालसिंह को शरण दी।
- 8 अगस्त, 1860 को ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत ने नीमच में अंग्रेजों समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। मेजर टेलर की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग ने इनके खिलाफ जाँच की तथा 10 नवम्बर, 1860 को इन्हें रिहा किया गया।
- कोटा में विद्रोह का कारण यह था कि ब्रिटिश अधिकारियों ने कोटा के महाराव रामसिंह को जो गुप्त परामर्श दिया था वह कोटा के सैनिकों को मालूम हो गया इससे नाराज हो सैनिकों ने विद्रोह किया।
- 15 अक्टूबर, 1857 को कोटा राज पलटन की सेना जिसमें ‘नारायण पलटन‘ के सभी सैनिक व ‘भवानी पलटन‘ के अधिकांश सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। नेतृत्व जयदयाल व मेहराब खां कर रहे थे।
- कोटा राज्य की सेना एवं जनता ने विद्रोह के दौरान मेजर बर्टन व डॉ. सेल्डर व कांटम की हत्या कर दी तथा मेजर बर्टन का सिर काटकर कोटा शहर में घुमाया गया था। महाराव रामसिंह को नजरबंद कर दिया एवं राज्य की सत्ता विद्रोहियों ने अपने हाथ में ले ली।
- कोटा महाराव ने मथुराधीश मंदिर के महंत गुसाई जी महाराज को मध्यस्थ बना विद्रोहियों के साथ सुलह करने के प्रयास किए।
- मार्च, 1858 में मेजर जनरल रॉबर्ट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने कोटा की सेना पर आक्रमण किया। 30 मार्च, 1858 को कोटा पर अंग्रेजी सेना का अधिकार हो गया। जयदयाल और मेहराब खाँ को फाँसी दे दी गई।
- करौली के महारावल मदनपाल की सेना भी मेजर जनरल रॉबर्ट्स के साथ थी।
- 6 माह तक क्रांतिकारियों के अधीन रहने के बाद कोटा पुनः महाराव को प्राप्त हुआ। इस प्रकार कोटा में सर्वाधिक भीषण और व्यापक विप्लव हुआ। कोटा में अंग्रेज विरोधी भावना सेना में ही नहीं जनता में भी व्याप्त थी तथा क्रांति की यह योजना बहुत पहले से ही आकार लेना प्रारम्भ हो गई थी।
- अंग्रेजों के विरूद्ध इतना सुनियोजित व सुनियंत्रित संघर्ष राजस्थान में अन्यत्र कहीं नहीं हुआ था।
धौलपुर में क्रान्ति
- यहाँ के शासक भगवन्तसिंह ने विद्रोह काल में अंग्रेजों को पूर्ण सहयोग दिया।
- धौलपुर में ग्वालियर व इन्दौर के विद्रोही सैनिकों ने राव रामचन्द्र एवं हीरालाल के नेतृत्व में स्थानीय सैनिकों की सहायता से विद्रोह कर राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। दिसम्बर, 1857 तक धौलपुर का शासक शक्ति व अधिकारविहीन शासक की भाँति रहा। 2 माह बाद पटियाला की सेना ने आकर विद्रोह को समाप्त किया।
ताँत्या टोपे
- तांत्या टोपे पेशवा बाजीराव के उत्तराधिकारी नाना साहब का स्वामिभक्त सेवक था। 1857 की क्रांति में वह ग्वालियर का विद्रोही नेता था।
- तांत्या टोपे 23 जून, 1857 ई. को अलीपुर में अंग्रेजों के हाथों परास्त होने के बाद राजस्थान के ब्रिटिश विरोधी लोगों से सहयोग प्राप्त करने की आकांक्षा से राजस्थान आया था लेकिन उन्हें वांछित सफलता नहीं मिली।
- तांत्या टोपे सर्वप्रथम 8 अगस्त, 1857 को भीलवाड़ा आये। वहाँ 9 अगस्त को उनका कुआड़ा नामक स्थान पर जनरल रॉबर्ट्स की सेना से युद्ध हुआ, परन्तु उन्हें पीछे हटना पड़ा।
- कुआड़ा से भागकर तांत्या टोपे सेना सहित कोठारिया के ठाकुर जोधसिंह के पास पहुँचे, जहाँ उन्हें रसद आदि उपलब्ध हुई।
- 13 अगस्त, 1858 को जनरल राबर्ट्स की सेना वहाँ आ गई और कोठारिया के निकट रूपनगढ़ में पुनः उसने तांत्या टोपे की सेना को परास्त किया। तांत्या टोपे अकोला की तरफ चले गये। वहाँ से वे झालावाड़ पहुँचे, वहाँ झालावाड़ की सेना उनसे मिल गई एवं शासक पृथ्वीसिंह को अपदस्थ कर झालावाड़ पर क्रांतिकारियों ने अधिकार कर लिया।
- तांत्या टोपे ने स्वयं को झालावाड़ का राजा घोषित किया था।
- तांत्या टोपे वहाँ से उदयपुर होते हुए पुनः ग्वालियर चला गया।
- तांत्या टोपे दिसम्बर, 1857 में पुनः मेवाड़ में आये तथा 11 दिसम्बर, 1857 को उसकी सेना ने बाँसवाड़ा को जीता। वहाँ से वे प्रतापगढ़ पहुँचे जहाँ मेजर रॉक की सेना ने उन्हें परास्त किया। इसके बाद वे जनवरी, 1858 में टोंक पहुँचे।
- तांत्या टोपे की सेना का अमीरगढ़ के किले के निकट टोंक के नवाब की सेना से युद्ध हुआ जिसमें क्रांतिकारियों की जीत हुई।
- टोंक में मेजर ईडन विशाल सेना के साथ आये, क्रांतिकारी फिर टोंक छोड़कर नाथद्वारा चले गए।
- तांत्या टोपे को नरवर के जागीरदार मानसिंह नरूका की सहायता से नरवर के जंगलों में पकड़ लिया गया और अन्ततः 18 अप्रेल, 1859 को उन्हें शिवपुरी में फाँसी दे दी गई।
अन्य तथ्य :
- बीकानेर के राजा सरदार सिंह एक मात्र ऐसे शासक थे जिन्होंने स्वंय सेनालेकर विद्रोहियों का दमन किया तथा राज्य के बाहर पंजाब गये।
- 1857 की क्रांति के भामाशाह बीकानेर के अमरचन्द बाठिया (ग्वालियर का व्यापारी) को रानीलक्ष्मी बाई, तांत्या टोपे तथा अन्य क्रान्तिकारियों को धन द्वारा सहयोग देने के कारण फाँसी की सजा दी गई।
- विद्रोह दमन में अंग्रेजों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण सहायता उदयपुर के महाराणा स्वरूप सिंह से प्राप्त हुई।
- जयपुर के महाराजा रामसिंह ने विद्रोह के दौरान अंग्रेजों की तन, मन, धन से मदद की। जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने उसे कोटकासिम परगना प्रदान किया।
- जयपुर में शहर के फौजदार सादुल्ला खां, नवाब विलायत अली खां, रावल शिवसिंह व मियाँ उस्मान विप्लव काल में दिल्ली गए व जयपुर में ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध षड़यंत्र करते रहे।